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________________ प्रज्झयण ९-४ दसवेत्रालियसुत्तं ४६ गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी जिणवयनिउणे' अभिगमकुसले। धुणिय रयमलं पुरेकर्ड भासुरम उलं गई गए ॥१५॥ त्ति बेमि ॥ ॥ णवमअज्झयणस्स विणयसमाहीए तइओ उद्देसो समत्तो ॥ . ॥णवममज्झयणां--चउत्थो उद्देसमो॥ सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खाय-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पराणत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पएणत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा परणत्ता तं जहा-विणयसमाही, सुयसमाही, तवसमाही, पायारसमाही। विणए सुए तवे य आयारे णिच्च पंडिया । अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंदिया ॥१॥ चउब्धिहा खलु विणयसमाही भवइ, तं जहा-अणुसासिज्जन्तो सुस्सूसइ, सम्मं संपडिवज्जइ, वेयमाराहयइ, न य भवह अत्तसंपग्गहिए चउत्थं पयं भवइ । भवइ य एत्थ सिलोगोः पेहेइ हियाणुसासणं सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठए । न य माणमएण मज्जइ वियणसमाही आययट्टिए ।।२।। चउब्धिहा खलु सुयसमाही भवइ, तं जहा-सुयं मे भविस्तइ त्ति अज्झाइयव्वं भवइ, एगग्गचित्तो भविस्सामि १-मय० । २ वए
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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