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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] [ १४७ य णं णगारे समुच्छिन्न किरियं अनियट्टि सुक्कज्भागं झियायमाणे वेय णिज्जं श्राउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ ||७२' | त ओरालियतेयकम्माई सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुलमा गई उड्ढं एगसमएणं श्रविग्गणं तत्थ गन्ता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ जाव अंत करेइ ॥७३॥ एस खलु सम्मत्तपरक्कम्मस्स अज्झयणस्स अट्ठे सम भगवया महावीरेणं श्राघविए, पन्नविए, परूविए, दंसिए, निदसिए उवदं सिए ||७४ || ति बेमि || ॥ सम्मत्तपरक्कमे समते ॥ २६ ॥ ॥ ग्रह तवमग्गं तीसइमं श्रयणं ॥ जहा उ पावगं कम्मं, रागदोससमजिये । खवे तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुख ||१|| पाणिवहमुसावाया श्रदत्तमेहुणपरिग्गहा विरश्री । राईभयविरो, जीवो भवइ श्रणासवो ||२|| पंचसमिश्र तिगुत्तो, अकसाओ जिरन्दिश्रो । अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो ॥३॥ एएसिं तु विवच्चासे, रागदोलसमज्जियं । खवेइ उ जहा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुख | ४|| जहा महातलायरस, संनिरुद्धे जलागमे । उस्चिगाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ||५|| एवं तु संजय साव, पावकम्म निरासवे । raकोडीसंचियं कम्मं, तवसा निजरिज्जइ ||६||
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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