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________________ १६८ ] [ जीवन-श्रेयस्कर - पाठमाला हासं भयं सोगपुमित्थित्रेयं, नपुंसवेयं विविहे य भावे ॥ १०२ ॥ आवजई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन् य एयप्रभवे विसेसे, कारुणदीणे हिरिमे वइस्से ॥१०३॥ कष्पं न इच्छिज सहाय लिच्छू, पच्छा णुतावे न तवप्पभावं । एवं वियारे अमियम्पयारे, अवजइ इन्दियचोरवसे ||१०४|| तओ से जायन्ति पयणाई, निमज्जिडं मोहमहराणवम्मि । सुहेसिणो, दुक्खविणोयडा श तप्पच्चये उज़मए य रागी ॥ १०५ ॥ विरजमारास ये इन्दियत्था, सद्दाइया न तस्स सव्वें वि मरणुन्नयें व‍ तावइयप्पगारा । तहेव जं निव्वत्तयंती श्रमरपुन्नयं वा ॥ १०६ || एवं ससंकष्पविकपणासुं, संजायई समयमुवट्टियस्स | अत्थे य संकपयओ तओ से, vetre कामगुणेषु तरहा ||१०७ || स वीयरागो कयसव्यकिश्च्चो. खवेइ नाणावर खणेां । समावरेइ, जं चन्तराय: पकरेइ कम्मं ॥ १०८ ॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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