SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ ] अन्नलिंग सिद्धा १२, गिहिलिंगसिद्धा १३, एगसिद्धा १४, अणेगसिद्धा १५, से तं श्रांतर सिद्ध केवलनाणं । सू०२१॥ [ जीवन - श्रयस्करं पाठमाला - से किं तं परंपरसिद्ध केवलनाणं ? परंपरसिद्ध केवलनाां श्ररोगविहं पराणत्तं तं जहा -- पढम समय सिद्धा, दुसमय सिद्धा तिसमय सिद्धा, चउसमयसिद्धा, जाव दससमयसिद्धा, संखिज्जसमय सिद्धा, ग्रसंखिज्जसमयसिद्धा, अशांतसमय सिद्धा, से त्तं परंपरसिद्ध केवलनाणं, से त्तं सिद्ध केवलनाएं | तं समासश्रो चउविहं पराणन्तं, तंजहा- दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ । खित्त गां केवलनाणी सव्वं खित्तं जाणइ पासइ । कालो गं केवलनाणीसव्वं कालं जाणइ पासइ । भावां केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । श्रह सपरिणामभावविरणत्ति कारणमति । सालयन पडिवाई, एगविहं केवलं नाणं ||१२|| सू० ||२२|| केवल नाणेऽत्थे, नाउं जे तत्थ पराणवराजोगे । ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुयं हवइ सेसं ॥ १३ ॥ से त्तं केवलन से त्तं नोइंदियगच्चक्खं, से त्तं पञ्चवक्खनाश || सू० ॥ २३ ॥ से किं तं परोक्खनाणं ? परोक्खनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहा--आभिणिवोहियनागपरोक्खं च, सुयनाणपरोक्खं च । जत्थ आभिणिवोहियनाशं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनारां तत्थ आभिणिवोहियनाणं, दोऽवि एयाई श्रमराणमरगयाई, तहवि पुरा इत्थ आयरिया नाणत्तं पराण्वयं ति श्रभिनिबुज्झइत्ति आभिणिवोहियनाणं, सुणेइत्ति सुर्यः मइकुवं जेण सुर्य, न मई सुयपुब्विया । सू० ॥ २४ ॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy