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जीवन - श्रेयस्कर - पाठमाला
उच्चारं पासवरणं खेलं सिंघाणजल्लियं । फासुयं पडिलेहिता परिद्वावेज्ज संजय ॥ १८ ॥ पविसित् परागारं पाणट्ठा भोयणस्स वा । जयं चिट्ठे मियं भासे न य रूवेसु मणं करे ॥ १६॥ बहुं सुइ करणेहिं बहुं अच्छीहिं पेच्छर ।
अज्झयण ८
यदि सुयं सव्वं भिक्लू अक्खाउमरिहइ ॥ २० ॥ सुयं वा जइ वा दिट्टु न लवेजोवघाइयं । नय केण उवाए गिहिजोगं समायरे ॥ २१ ॥ निरस निज्जूढं भद्दगं पावगं ति वा । पुट्ठो वा वि श्रपुट्ठो वा लाभालाभं न निद्दिसे || २२ ॥ न य भोयणम्मि गिद्धो चरे उछं अयंपिरो ।
फासुयं न भुंजेजा कीयमुद्देसियाहडं || २३ ॥ सन्निहिं च न कुव्वेजा श्रणुमायं पि संजए । मुहाजीवी असंबद्ध हवेजा जग निस्सिए ॥ २४ ॥ लूहवित्ती सुट्टे पिच्छे सुहरे सिया । श्रसुरतं न गच्छेज्जा सच्चा जिरा सासणं ॥ २५ ॥ करासोक्खेहिं सहेहिं पेम नाभिनिवेसप ।
दारुणं कसं फासं कारण अहियासए ॥ २६ ॥ खुहं पिवासं दुस्सेज्ज सीउराहं अरई भयं ।
हिया से वहिओ देहदुक्खं महाफलं ॥ २७ ॥ अत्थंगयंमि इच्चे पुरत्थाय अगुग्गए । आहारमा इयं सव्वं मणसा वि न पत्थए || २८ ॥ अति अचवले अप्पभासी मियासणे । हवेज्ज उयरे दन्ते थोवं लधुं न खिसए ॥ २६ ॥ न बाहिरं परिभवे अत्ताणं न समुकसे । सुयलाभे न मज्जेज्जा जच्चा तवस्तिबुद्धिए ॥ ३० ॥