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१२.
जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला
अज्झयण ४
जया जीवमजीवे य दो वि एए वियाणइ । तया गई बहुविहं सम्वजीवारण जाणइ ॥१४॥ नया गई बहुविहं सध्वंजीवाण जाणइ । सया पुराणं च पावं च बन्धं मोक्खं च जाण्इ ॥१५॥ सया पुराणां च पाधं च बन्ध मोक्खं च जाणइ । तया निधिन्दए भोए जे दिव्वे जे य माणुसे ।।१६।। नया निविदए भोए जे दिवे जेय माणुले । तया चयाइ संजोगं सम्भितरबाहिरं ॥ १७ ॥ अया चयइ संजोगं सभितरबाहिरे । तया मुरडे भविसाणं पन्बयइ अणगारियं । १८ जया मुण्डे भपित्ताणं पव्वयइ अरणगारियं । त्या संवरमुकिट्ट थम्म फासे अणुत्तरं ॥ १६ ॥ जया संघरमुक्किट्ठ धम्मं फासे अणुत्तरं । बया धुरपड कम्मरयं अबोहिकलुर्स कंड ॥ २० ॥ अथा धुणइ, कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं । वया सवचगं नाणं दसणं चामिगच्छद ॥ २१ ।। जया सब्यत्तगं नाणं दसणं चाभिगच्छद। . सया लोगमलोगं च जियो जाणइ केवली ॥ २२ ॥ जया लोगमलोग च जिरमा जाइ केवली। तया जोगे निलंभित्ता सेलेसिं पडिवजह ॥ २३ ॥ जथा जोगे निलंमित्ता सेलेसिं पडिवजह । तया कम्म खवित्ता सिद्धिं गच्छइ नीरओ ॥ २४॥ जया कम खविचारां सिद्धिं गच्छइ नीरओ। तया लोगमत्थयत्थो सिद्धो हवइ सासश्रो ॥ २५ ॥ सुहसायगस्स समणस्स सायाङ्लगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोअस्स दुलहा सुगइ तारिसगस्स ॥२६॥