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________________ 'श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] वराणो जे भवे किरहे, भइए से उ गन्धश्रो। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥२३॥ . वरणो जे भवे नीले, भइप से उ गन्धओ। रसो फासओ चेव, भइए संठाणोवि य ॥२४॥ वराणो लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धो । रसओ फासो चेव भइए संठाणओवि य ।।२।। वरणवो पीयए जे उ, भइए से उ गन्धरो। रसो फासो चेव, भइए संठाणश्रोवि य ॥२६॥ वराणओ सुक्किले जे उ, भइए से उ गन्धो । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य । २७॥ गन्धो जे भवे सुब्भी, भइए से उ वराणो । रसओ फासो चेव, भइए संठाणोवि य ॥२८॥ गन्धओ जे भवे दुपी, भइए से उ वराणो । रसो फासओ चेव, भइए संठाणोवि य ॥२६॥ रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वराणओ। गन्धो रसो चेव. भइए संठाणोवि य ॥३०॥ रसो कडुए जे उ, भइए से उ वरणओ। गन्धो फासो बेव, भइए संठाणोवि य ॥३१॥ रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वरणभो । गन्धओ फासो चेव, भइए संठाणोवि य ॥३२॥ रसओ अम्बिले जे उ, भइए से उ वरखो। गन्धो फासो चेव, भइए संठाणोषि य ।।३३।। रसओ महुरए जे उ, भइए से उ चरणओ। गन्धओ फासो बेव, भइए संठाण मोवि य Hश्॥ फासो कक्खडे जे उ, भइए से उ बराणो। गन्धणे रसओ चेष, भइए संठाण मोवि य ॥३५॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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