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________________ ६-३ अज्झयण दसवेत्रालियसुतं ७ आयारमट्ठा विणयं पांजे सुस्सूसमाणो परिगिझ वकं । जहोवइटुं अभिकंखमाणो गुरुं तु नासाययई स पुजो ।। २।। राइणिएसु विणयं पउजे डहरा वि य जे परियाय जिट्ठा । नीयत्तणे वट्टइ सञ्चवाई __ ओवायवं वक्ककरे स पुजो ।। ३ ॥ अन्नायउंछं चरई विसुद्धं जवणट्ठया समुयाणं च निञ्च । अलद्धयं नो परिदेवएजा लडु न विकत्थयई स पुजो ॥४॥ संथारसेज्जासणभत्तपाणे अप्पिच्छया अइलाभे वि संते । जो एवमप्पाणभितोसएजा संतोसपाहन्नरए स पुजो ॥ ५॥ .. सका सह प्रासाइ कंटया अओमया उच्छहया नरेणं । प्रणासए जो उ सहेज कंटए वईमए करणसरे स पुज्जो ॥६॥ मुहुत्तदुक्खा उ हवंति कंटया : अश्रोमया ते वि तओ सुउद्धरा। वायादुरुत्ताणि दुरुद्धगणि वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ।। ७ ।। समावयंता वयणाभिघाया करणं गया दुम्मणियं जयति । धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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