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________________ १६४] [ जीवन-श्रेयस्कर-पाठमाला रागाउरे सीयजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे विवन्ने ।।७६॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि फासं अवरज्झई से ॥७॥ एगन्तरत्ते रुइरंमि फासे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।।८।। फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेहि अत्तगुरू किलिट्टे ॥७॥ फासाणुवा एण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ॥८॥ फासे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहूिँ । अतुट्ठिदासेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥८१॥ तराहाभिभूयस्स अदत्तहारिणा, फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डा लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥८॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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