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________________ अझ ७ दसवेलियसुतं धुणंति पावाई पुरेकडाई नवाई पावाई न ते करेंति ॥ ६८ ॥ सवसंता श्रममा अकिंचणा ३१ सविज्जविज्जाणुगया जसंसि । उपसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धिं विमाणाई उवैति ताइणेो ॥ ६६ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ छमहिल्लियायारकहज्झयणं समत्तं ॥ ॥ वक्कसुद्धी नामं सत्तमममयणं । चाहं खलु भासाणं परिसंखाय परागवं । दोराहं तु विषयं सिक्खे दो न भासेज सव्वसा ॥ १ ॥ जा य सच्चा श्रवत्व्वा सच्चामोसा य जा मुसा । जाय बुद्धेहिणारुणा न तं भासेज पन्नवं ॥ २ ॥ असच्चमोसं सञ्चं च अणवज्जमककसं । समुप्पेहमसद्धिं गिरं भासेज पन्नवं ॥ ३ ॥ एयं च अट्टमन्नं वा जं तु नामेइ सासयं । सभासं सच्चमोसं पि तं पि धीरो विवजए ॥ ४ ॥ वितहं पि तहामुत्तिं जं गिरं भासए नरो । तम्हा सो पुट्ठो पावेणं किं पुण जो मुसं वए ॥ ५ ॥ तम्हा गच्छामों वक्खामो श्रमु वा णे भविस्सह । अहं वा णं करिस्सामि एसेो वा णं करिस्सइ ॥ ६ ॥ एवमाइ उ जा भासा पस्सकालम्मि संकिया । संपयामट्टे वा तं पि धीरो विवजए ॥ ७ ॥ अमिय कालम्मि पच्चुत्पन्नमणा गए । जमट्ठे तु न जाणेजा एवमेयं ति नो वए ॥ ८ ॥
SR No.022602
Book TitleJivan Shreyaskar Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharben Amrutlal Zaveri
PublisherKesharben Amrutlal Zaveri
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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