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व्रत कथा कोष
उपवास के दिन मध्यान्ह पूजापाठ करने के उपरान्त दो घटी पर्यन्त कायोत्सर्ग करना तथा पञ्च परमेष्ठी के गुणों का चिंतन करना अनिवार्य है । मध्यान्ह काल का प्रमाण गणितविधि से निकालना चाहिए । दिनमान में पाँच का भाग देकर तीन से गुणा कर देने पर मध्यान्ह का प्रमाण आता है । जैसे भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा के दिन दिनमान का प्रमाण ३१ घटी ५१ पल है । इस दिन मध्यान्ह का प्रमाण निकालना है | अतः गणितक्रिया की, ३१/१५ - ५ = ६१७ इसको तीन से गुणा किया तो ३१७× ३=१८/२१ गुणाकार (गुणनफल ) अर्थात १८ घटी २१ पल मध्यान्ह का प्रमाण है | घण्टा मिनट में यही प्रमाण ७ घंटा २० मिनट २४ सेकंड हुआ । अर्थात सूर्योदय से ७ घंटा २० मिनिट २४ सेकंड के पश्चात मध्यान्ह है । यदि इस दिन सूर्य ५/३० बजे उदित होता है तो १२ बजकर ५० मिनिट १४ सेकंड से मध्यान्ह का आरंभ माना जायेगा । मेघमाला व्रत में उपवासों के दिन ठीक मध्यान्ह काल मे सामायिक भौर कायोत्सर्ग करना चाहिए । मेघमाला व्रत के समान रत्नत्रय व्रत में भी अभिषेक प्रतिपदा को ही किया जाता है अर्थात इन दोनों व्रतों की समाप्ति प्रतिपदा को होती है ।
रत्नत्रय व्रत की तिथियों का निर्णय
रत्नत्रयेऽप्येवमवधारणं कार्य, यतः तस्य
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यथा व्रतं कार्यं तथा नान्यथा भवति ।
तिथिव्रतत्वान्नाधिका अतः
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अर्थ — रत्नत्रय व्रत को संपन्न करने के लिए यह अवधारण करना चाहिए कि इस व्रत की तिथिसंख्या अधिक नहीं है । अतः इसप्रकार व्रत करना चाहिए, जिससे व्रत मे किसी प्रकार का दोष न आवे ।
विवेचन – रत्नत्रय व्रत एक वर्ष में तीन बार किया जाता है । भाद्रपद, माघ और चैत्र में यह व्रत उक्त महिनों के शुक्ल पक्ष में ही संपन्न होता है । प्रथम शुक्ल पक्ष की द्वादशी को एकाशन करना चाहिए । त्रयोदशी, चतुर्दशी श्रौर पौर्णिमा का तेला करना चाहिए | पश्चात् प्रतिपदा को एकाशन करना चाहिए । इस प्रकार पाँच दिन तक संयम धारण कर ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। तीन वर्ष के उपरान्त इसका उद्यापन करते हैं - यह व्रत करने की उत्कृष्ट विधि है । यदि शक्ति न हो