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व्रत कथा कोष
एक दिन अपने परिवार सहित अनंतनाथ तीर्थ कर के समवशरण में गया । वन्दना कर धर्मोपदेश सुना । उसके बाद अपने दोनों हाथ जोड़कर गणधर से कहा-'हे संसार सागर तारक गणधर ! आप मुझे संसार सागर से पार होने के लिये कोई व्रत कहो।' तब उन्हें अरनाथ तीर्थ कर चक्रवर्ती व्रत का पालन करने के लिये कहा । यह सुन राजा बहुत आनन्दित हुआ । फिर वह तीर्थ कर और गणधर को नमस्कार कर अपने घर गया, वहां उसने उस व्रत का पालन कर उसका यथाविधि उद्यापन किया ।
फिर एक दिन वह अपने महल के ऊपर बैठा था। अचानक बादलों की विचित्रता देखकर उसे संसार से वैराग्य उत्पन्न हुआ । जिससे उसने दिगम्बरी मुनि दीक्षा धारण की और घोर तपश्चर्या करने लगा । उसका समाधिपूर्वक मरण हुना। वह जयंत नामक अनुतर विमान में देव हुा । वहां बहुत समय तक सुख भोगकर काश्यप गोत्रीय सुदर्शन सेठ के यहां जन्म लिया। तीर्थ कर नामकर्म के उदय से देवों ने उनके पांचों कल्याणक मनाये । उनका नाम अरनाथ रखा । वे चक्रवर्ती तीर्थकर और कामदेव थे । बड़ा होने पर राज्य सुख भोग रहे थे । एक दिन अचानक बादलों की चंचलता देखकर उन्हें वैराग्य हो गया, लौकांतिक देवों ने पाकर उन्हें सम्बोधित किया । दीक्षा लेकर घोर तपश्चर्या करने लगे, जिससे चार कर्मों का नाश हो गया और केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । धर्मोपदेश करते हुये सब जगह विहार किया । इस प्रकार वे सम्मेदशिखर पर पहुचे । वहां पर योग धारण किया, शक्ल ध्यान के प्रभाव से चार अघातिया कर्मों का नाश कर मोक्ष गये । ऐसा इस व्रत का माहात्म्य है।
प्राकाश पंचमी व्रत कथा
व्रत विधि :-भाद्रपद शुक्ला ४ को एकाशन करे । ५ के दिन उपवास करे । शुद्ध कपड़े पहन कर मन्दिर जाये । वहां दर्शन प्रदक्षिणा आदि करे । मलनायक प्रतिमा का अभिषेक करे । पूजा करे । शाम को मन्दिर के खुले स्थान में चौबीस तीर्थ कर की आराधना करने के लिये चतुरस्त्र पांच मण्डल पांच वर्षों के निकाले । मंडप का शृगारादि करके चौबीस तीर्थ करों का पंचामृत अभिषेक करके यंत्र दल को एक कुम्भ पर स्थापित करे । सकलीकरण, नित्यपूजा क्रम करे । फिर