________________
४०० ]
व्रत कथा कोष
बढ़ गयी । पर यह ख्याति उसके पिता को सहन न हुयी । इसलिये उससे छल करने का उन्होंने विचार किया। विद्या भेजकर उस पर उपसर्ग करना शुरु किया । पर प्रभावति ने वह उपसर्ग पानंद से सहन किया अंत में समाधिपूर्वक मर क के अच्युत स्वर्ग में पद्मनाथ नामक देव हुयी।
__ इसी अवधि में मृणालपुरी की एक श्राविका रुक्मणी मर कर स्वर्ग में देवी हयी । उन दोनों ने अपना समय सुख से बिताया। एक दिन पद्मनाथ देवी को बोला "मेरे पूर्व भव के पिता मिथ्यात्व में फंसे हैं । उनको उपदेश देकर सन्मार्ग पर लाना कठिन है । पर हम दोनों उधर जाते हैं।"
तब दोनों स्वर्ग से नीचे आये । श्रुतकीति को अपना पहला भव बताया। जिससे उसको अपने किये हुये कुकृत्य पर पश्चाताप हुा । उन्होंने सर्वप्रपंच का त्याग कर जिनदीक्षा लेकर तपश्चरण किया। समाधिपूर्वक मरण कर स्वर्ग में प्रभास नामक देव हुआ।
पद्मनाथ देव का जीव तु रत्नशेखर और देवी तेरी स्त्री मदनमंजूषा है । और वह प्रभास देव मेघवाहन विद्याधर है । पूर्व जन्म में पुष्पांजलि व्रत किया था उसकी प्रभावना से तू स्वर्ग के सुख भोगकर चक्रवर्ती हुआ । यह पूर्वभव का व्रत है। इसलिये तुम्हारा एक दूसरे के प्रति अधिक प्रम है ।
तब रत्नशेखर ने फिर से पुष्पांजली व्रत किया । पूर्ण करके वह घर पाया। बहुत समय तक सांसारिक सुखों को भोगकर अन्त में जिनदीक्षा ली। अनेक भव्यजीवों को धर्मोपदेश दिया और शेष कर्मों का नाश कर अन्त में वह मोक्ष गये । मदनमंजूषा ने भी दीक्षा ली वह मरकर सोलहवें स्वर्ग में देव हुयो। अब वह मोक्ष जायेगी।
पञ्चपरमेष्ठी व्रत अरिहन्त के ६४ गणों के लिए चार चतुर्थियों के चार, आठ अष्टमियों के आठ उपवास, बीस दशमियों के बीस उपवास और चौदह चतुर्दशियों के चौदह उपवास किये जाते हैं । सिद्ध परमेष्ठी के आठ मूल गुण के आठ अष्टमियों के आठ उपवास किये जाते है । आचार्य के ३९ मूल गुणों के लिए बारह द्वादशियों के बारह