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व्रत कथा कोष
करे, दूसरे दिन प्रातःकाल जिनेन्द्र प्रभु को नमस्कार करके घर आवे, सत्पात्रों को दान देवे, फिर अपने पारणा करे । इस प्रकार इस व्रत को तीन वर्ष तक पालन कर अंत में उद्यापन करे, उस समय त्रिकाल तीर्थंकरों की आराधना करनी चाहिये, चतुर्विध संघ को आहारादि देकर संतुष्ट करे, इस प्रकार व्रत का स्वरूप है ।
कथा इस भरत क्षेत्र के मगध देश में कांची नगर नाम का मनोहर गांव है, उस गांव में पिंगल नाम का एक गुणवान नीतिमान् पराक्रमी राजा राज्य करता था, उस राजा को सागरलोचना नाम की एक अत्यन्त रूपवतो, लावण्यवती, गुणवती ऐसी पटट्रानी थी, उसके एक सुमंगल नाम का बड़ा प्रतापी राजकुमार था, इस प्रकार प्रजाजनों का पालन करता हुआ राजेश्वर्य भोगता था ।
___ एक दिन युवराज सुमंगल नगर के बाहिर उद्यान में गया, वहां पूर्णसागर नाम के मुनिराज अवधिज्ञान समन्वित पधारे, युवराज ने मुनिराज को देखते ही तीन प्रदक्षिणा लगाई और साष्टांग नमस्कार किया, धर्मोपदेश सुनने के बाद कहने लगा कि हे मुनिराज आपकी अत्यन्त मोहक मुद्रा को देखकर मन में आपके प्रति मेरा मोह उत्पन्न हो रहा है, इसका कारण क्या है आप कहिये ।
तब मुनिराज अपने अवधिज्ञान से सब वृतांत जानकर कहने लगे कि हे राजपुत्र हमारे पर तुम्हारा मोह क्यों उत्पन्न हो रहा है मैं सब भव प्रपंच कहता हूं सुन । कुरू जांगल देश में हस्तिनापुर नाम का गांव है, उस गांव में कामुक नाम का एक राजा पहले राज्य करता था, उसकी रानी का नाम कमललोचना था, उसके विशाखदत्त नाम का सुन्दर पुत्र था, राजा का वरदत्त मन्त्री था वह बहुत होशियार था, मंत्री को पत्नी का नाम विशालनेत्री था, उसके गर्भ से विजयसुन्दरी नामक गुणवान सुन्दर एक पुत्री का जन्म हुआ, इस सब के साथ राजा अपना राज्य सुख
आनन्द से भोगता था, उस मन्त्री की कन्या, विवाह के योग्य हो गई तब राजा के पुत्र विशाखदत्त के साथ विवाह कर दिया, दोनों ही आनन्द से अपना समय निकालने लये, कुछ समय बाद कर्मयोग से राजपुत्र को रोग ने घेर लिया और वह मर गया।