Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 784
________________ व्रत कथा कोष [ ७२५ और भावनापच्चीसी दोनों ही व्रतों में पच्चीस-पच्चीस उपवास किये जाते हैं । प्रथम ज्ञान प्राप्ति के लिए और द्वितीय सम्यग्दर्शन को निर्दोष करने के लिए किया जाता है । विवेचन :-पच्चीसी व्रत कई प्रकार से किये जाते हैं। प्रधान दो प्रकार के पच्चीसी व्रत हैं - ज्ञान पच्चीसी और भावना-पच्चीसी। व्रत का उद्देश्य द्वादशांग जिनवाणी की प्राराधना है तथा सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति उसका फल है । ज्ञानपच्चीसी व्रत में प्रधान रूप से श्रुतज्ञान की पूजा तथा श्रुतस्कन्ध यन्त्र का अभिषेक किया जाता है । इस व्रत में ग्यारह अंगों के ज्ञान के लिए ग्यारह एकादशियों के उपवास और चौदह पूर्वो के ज्ञान के लिए १४ चतुर्दशियों के उपवास किये जाते हैं । उदाहरण- श्रावण सुदी चतुर्दशी को पहला उपवास, भादों बदी एकादशी को दूसरा, भादों बदी चतुर्दशी को तीसरा, भादों सुदी एकादशी को चौथा, भादों सुदी चतुर्दशी को पांचवाँ, आश्विन बदी एकादशी को छठवां, आश्विन बदी चतुर्दशी को सातवां, पाश्विन सुदी एकादशी को पाठवां, आश्विन सुदी चतुर्दशी को नौवाँ, कार्तिक बदी एकादशी को दसवां, चतुर्दशी को ग्यारहवां, कार्तिक सुदी एकादशी को बारहवां, चतुर्दशी को तेरहवां, मार्गशोर्ष बदी एकादशी को चौदहवां, चतुर्दशी को पन्द्रहवां, मार्गशीर्ष सुदो एकादशो को सोलहवां, चतुर्दशी को सत्रहवां, पौषबदी एकादशी को अठारहवां, चतुर्दशी को उन्नीसवां, पौषबदी एकादशी को बीसवां, चतुर्दशी को इक्कीसवां, माघबदी एकादशी को बाईसवां, चतुर्दशी को तेई. सवां, माघ सुदी चतुर्दशी को चौबीसवां और फाल्गुन बदी चतुर्दशी को पच्चीसवां उपवास करना होगा। इस व्रत के लिए "प्रों ह्रीं जिनमुखोद्भूत द्वादशाङ्गाय नमः।" इस मन्त्र का जाप करना होता है । व्रत एक वर्ष या १२ वर्ष तक किया जाता है । इसके पश्चात् उद्यापन कर दिया जाता है । भावना पञ्चमी व्रत सम्यक्त्व की विशुद्धि के लिए किया जाता है। सम्यग्दर्शन के २५ दोष हैं-तीन मूढ़ता, छः अनायतन, पाठ मद तथा शंकादि पाठ दोष । तीन तृतीयानों के उपवास तीन मूढ़ताओं को दूर करने, छः षष्ठियों के उपवास षट अनायतन को दूर करने, पाठ अष्ट मियों के उपवास पाठ मदों को दूर करने एवं प्रतिपदा का एक उपवास, द्वितीयाओं के दो उपवास और पञ्चमियों के पांच उपवास इस प्रकार कुल पाठ उपवास शंकादि पाठ दोषों को दूर करने के लिए किये जाते

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