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व्रत कथा कोष
भगवान की प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, पांच प्रकार का नैवेद्य बनाकर चढ़ावे, श्रुत व गरणधर, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।
ॐ ह्रीं प्रसिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, रणमोकार मन्त्र का १०८ बार जाय करे, व्रत कथा पढ़े, अखण्ड दीप जलावे, एक फूल की माला बनाकर भगवान के चरणों में चढ़ावे, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, इस प्रकार प्रत्येक अष्टमी व चतुर्दशी के दिन व्रत पूजा करे, प्रत्येक दिन दूध का अभिषेक करे, पुष्पमाला चढ़ावे, इस प्रकार चार महीने तक प्रतिदिन एकेक वस्तु छोड़कर भोजन करे, सत्पात्रों को दान करे, ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे, कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत का उद्यापन करे, उस समय पंचपरमेष्ठि विधान करके महाभिषेक करे, चतुविध संघ को हारादिदेवे ।
कथा
राजा श्रेणिक और रानी चेलना की कथा पढ़े ।
अथ ज्ञानचन्द्र अथवा जिनचन्द्र व्रत कथा
शुक्ल पक्ष या
व्रत विधि - चैत्र प्रादि १२ महीने में कोई भी महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन एकाशन करे व ५ के दिन सुबह शुद्ध कपड़े पहनकर अष्टद्रव्य लेकर मन्दिर में जाये । दर्शन आदि कर वेदि पर पंचपरमेष्टी की प्रतिमा स्थापित करे, उसका पंचामृत अभिषेक करे । प्रष्टद्रव्य से पूजा करे ।
जाप :- "ॐ ह्रीं प्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा "
इस मन्त्र का १०८ पुष्पों से जाप करे, रणमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे । कथा स्तोत्र अर्चना आदि करे । आरती करे । उस दिन उपवास करके धर्मध्यान पूर्व समय बितावे । दूसरे दिन दान व पूजा करके पारणा करे ।
इस क्रम से महीने में एक ऐसी ५ तिथि करे । उद्यापन करे | पंचपरमेष्ठी विधान करे । चतुःविध संघ को दान दे । करुरगा दान भी दे ।