Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 790
________________ व्रत कथा कोष भण्डार दशमी व्रत भण्डार दशमी व्रत शक्ति जुपाय, दश जिन भवन भण्डार चढ़ाय । ( व्रत कथा समाप्त ) प्रशस्ति स्वस्ति श्री वीर निर्वाण २५१५ मासानां मासे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे नवम्यां सोमवासरे श्रवण नक्षत्रे, अभिजित शुभ मुहूर्ते वृश्चिक नामास्थिर लग्ने उत्तरप्रदेशस्य मेरठ राज्ये, बडोत नगरस्य वृषभजिन चैत्यालय समीपे अनुवादकर्त्ता श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्य परंपराया श्री प्राचार्य प्रादिसागर अकली तत्शिष्य समाधि सम्राट आध्यात्मयोगी तीर्थभक्त वंदना-शिरोमणि चतुर्नु योगज्ञाता महामन्त्रवादी, आचार्य महावीरकीर्ति तत्शिष्य सर्वांगमर्मज्ञ, मन्त्र तंत्र, यन्त्र शास्त्र विशेषज्ञ वादीभसूरीं, गणधराचार्यं कुन्थुसागरेण, व्रत कथा कोष संग्रह व मराठी भाषात् हिन्दी भाषानुवाद मया सर्वजनहितार्थ पद्यानुवाद कृता । इति शुभं यात् । सूतक विचार रजःस्राव सूतक प्राकृतं जायते स्त्रीणां मासे मासे स्वभावतः । पंचाशद्वर्षादूर्ध्व तु अकाल इति भाषितः । भावार्थ : - स्त्रियों को स्वभाव से ही महीने - महीने रजस्राव होता है, वह प्राकृतिक रज है । दश वर्ष के भीतर और ५० वर्ष के ऊपर जो रजस्राव होता है वह अकाल रज है, यह दूषित नहीं है । [ ७३१ शुद्धा भर्तुश्चतुर्थेऽह्न भोजने रन्धनेऽपि वा । देव पूजा गुरूपास्ति होम सेवा तु पंचमे ॥ भावार्थ : - रजस्वला स्त्री चौथे दिन स्नान करने पर पति सेवा और भोजनपान बनाने के योग्य हो जाती है । परन्तु देव पूजा, गुरूपासना और हवन - सेवा योग्य पांचवें दिन ही होती है । कालिक ऋतुदोष ऋतुकाले व्यतीते तु तत्र स्नानेन शुद्धि: यदि नारी रजस्वला । स्याद्ष्टादशदिनात्पुरा ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808