Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 795
________________ ७३६ ] व्रत कथा कोष भावार्थ :-नाना, नानी, मामा, मामी, पुत्री का लड़का, भानजा, मौसी, बुप्रा ये यदि अपने घर पर मरें तो ३ दिन का सूतक होता है । अपने गृह से बाहर मरें तो सूतक नहीं। कन्याया मरणे चैव विवाहा प्राग्दिनत्रयम् । ऊठानां मरणे भर्तुः पूर्ण पक्षस्य चोदितम् ।। भावार्थ :- कन्या के मरण का सूतक ३ दिन का, और विवाही हुई कन्या अपने घर मरे तो माता, पिता, भाइयों को ३ दिन का और ससुराल वालों को १० दिन का सूतक होता है। स्वसुर्ग हे मृतो भ्राता भ्रातुर्वाथ गृहे स्वसा । प्रशौचं त्रिदिनं तत्र सूतकं न परत्र तु ।। भावार्थ-बहिन के घर भाई या भाई के घर बहन का मरण हो तो दोनों के लिये तीन दिन का सूतक होता है । और यदि इनका अन्यत्र मरण हो तो सूतक नहीं होता। सतीनां सूतकं हत्या पापं षष्मासकं भवेत् ।। अन्या सामास्म हत्यानां प्रायश्चितं विधानतः ॥ भावार्थ :-अपने को अग्नि में जला लेवे ऐसी सती होने के पाप का सूतक छः मास का होता है और अन्यान्य हत्यारों का सूतक प्रायश्चित ग्रन्थों में जानकर शुद्धि करे। गभिण्यां मरणे प्राप्ते नैमित्यादिकारणे । सहैव दहनं कुर्याद् गर्भच्छेदं न कारयेत् ।। भावार्थ :-यदि गभिणी स्त्री का मरण रोगादिक किसी भी कारण से हो जाये तो उसे गर्भ सहित ही जला देना चाहिये । क्योंकि माता के मरण होने से पूर्व ही बच्चा का मरण हो जाता है। दुर्मरण- विद्यु तोयाग्निचांडाल सर्पपांशद्विजादपि । वृक्षव्याघ्रपशूभ्यश्च मरणं पापकर्मणाम् ।। प्रात्मानं घातयेद्यस्तु, विषशास्त्राग्निना यदि । स्वेच्छया मृत्युमाप्नोति ततो दुर्मरणं भवेत् ।।

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