Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 793
________________ ७३४ ] व्रत कथा कोष भावार्थ : - घोड़ी, भैंस, दासी, गौ आदि जो अपने गृह के भीतर जने तो एक दिन का सूतक होता है । बाहर नहीं । महिष्या पक्षकं क्षीरं गोक्षीरं च दशोदिनम् । अष्टमे दिवसे प्रजाया क्षीरं शुद्ध न चान्यथा ॥ भावार्थ :--जनने के बाद महिषी का दुग्ध १५ दिन में, गाय का दश दिन में और बकरी का ८ दिन में शुद्ध होता है । अन्यथा नहीं । मरणसूतक नाभिच्छेनतः पूर्वे जीवन जातो मृतो यदि । मातुः पूर्णमतोऽयेषां पितुश्च त्रिदिनं समम् ।। भावार्थ : :- - जीता उत्पन्न हुआ बालक नालच्छेदन के माता के लिये दश दिन का और पिता भाई तथा प्रसन्न बन्धुत्रों सूतक होता 1 मृतस्य प्रसवे चैव नाभिच्छेदनतः परम् मातुः पितुश्च श्रासन्नजनानां पूर्णसूतकम् ।। भावार्थ : - मरा हुआ बालक यदि उत्पन्न हो अथवा नालच्छेदन के पश्चात् मरण करे तो माता, पिता और प्रसन्न बन्धुनों को दश दिन का सूतक होता है । अतीतदशाहस्य बालस्य मरणे सति । पित्रोर्दशाहमा शौचं तदूर्ध्व पूर्णसूतकाः ॥ पूर्व ही मर जाये तो को तीन दिन का भावार्थ : - यदि बालक १० दिन के भीतर ही मर जाये तो मरण का सूतक उन्हीं जन्म के सूतक के दश दिन के भीतर ही समाप्त हो जाता है । यदि दश दिन के बाद मरण करे तो सूतक मानना पड़ेगा । जातदंत शिशोर्नाशि पित्रोर्मातुर्दशाहकम् । प्रत्यासन्न सगोत्राणामेकरात्रिममं भवेत् || प्रत्यासन्नबन्धूनां स्नानमेव प्रचोदितम् । अन्नप्राशनं नैव मृते बालं दिनत्रयम् ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808