Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 803
________________ ७४४ ] व्रत कथा कोष (२) क्षेत्र स्थान शुद्धि-जहां कलकलाटादि शब्द सुनाई न पड़े तथा डांस, मच्छर आदि बाधक जन्तु न हों । चित्त में क्षोभ उत्पन्न करने वाले उपद्रव एवं शीत उष्ण आदि की बाधा न हो, ऐसा एकान्त निर्जन स्थान सामायिक के योग्य है । (३) काल शुद्धि-प्रभात, मध्यान्ह और संध्या समय, उत्कृष्ट ६ घड़ी, मध्यम ४ घड़ी और जघन्य २ घड़ी तक सामायिक करे ।। (४) -प्रासन शुद्धिकाष्ठ, शिला, भूमि, रेत या शीतल पट्टी पर पूर्व दिशा या उत्तर की ओर मुख करके पद्मासन, खङ्गासन या अर्धपद्मासन होकर क्षेत्र तथा काल का प्रमाण करके मौन ग्रहणकर सामायिक पाठ प्रारम्भ करे । (५) विनय शुद्धि--आसन को कोमल वस्त्र या बुहारी से बुहारकर ईपथ शुद्धिपूर्वक सामायिक प्रारम्भ करे । (६) मन शुद्धि-शुद्ध विचारों की तरफ उपयोग रखना । (७) वचन शुद्धि-धीरे-धीरे साम्यभाव पूर्वक मधुर स्वर से पाठ उच्चारण करना। (८) काय शुद्धि--शौच आदिक शंकाओं से निवृत्त होकर यत्नाचारपूर्वक शरीर शुद्ध करके हलन चलन क्रिया रहित सामायिक प्रारम्भ करना । सामायिक के पांच प्रतिचार (१,२,३) मन वचन काय को अशुभ प्रवर्ताना । (४) सामायिक का समय व पाठ भूल जाना। (५) सामायिक करने में अनादर करना। उक्त आठ शुद्धियों पर ध्यान देते हुए पांच अतिचारों को बचाकर सामायिक प्रारम्भ करे। मन्त्रोच्चारण सामायिक करते समय णमोकार मन्त्र को ३ स्वासोच्छवास में १ बार पढ़ना चाहिये । १०८ बार मन्त्र के जाप्य में ३२४ श्वासोच्छवास होंगे।

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