Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 805
________________ ७४६ ] व्रत कथा कोष बिन्दुों में प्रत्येक बिन्दु पर एक-एक मन्त्र का जाप्य करता हुआ १०८ बिन्दुओं पर १०८ जाप्य करे । कमल प्रकृति निम्न प्रकार है (२) हस्तांगुलि जाप्य - हाथ की प्रत्येक अंगुलि में ३-३ पोरवे होते हैं । इस प्रकार एक हाथ की चारों अंगुलियों में १२ पोरवे कुल होते हैं । दाहिने हाथ के प्रत्येक पोरवे पर एक एक बार नमस्कार मन्त्र जपे, इस प्रकार दाहिने हाथ के चारों अंगुलियों के १२ पोरवे पर १२ मन्त्र हुए । १२ मन्त्र हो जाने पर चाहे हाथ के प्रथम अंगुली के प्रथम पोरवे पर अंगूठा रखे इस प्रकार ६ बार में १०८ बार मन्त्र जय हो जायेगा । (३) माला जाप्य - १०८ दाने वाली सूत की माला बनाकर उसके द्वारा जाप्य करे । इस प्रकार किसी प्रकार से जाप्य पूरा करके कोई स्तुति पाठ वगैरह पढ़ने का अवकाश हो तो पढ़े। बाद में पहले की तरह खड़ा होकर चारों दिशाश्नों में ६-६ बार नमस्कार मन्त्र जपे और तीन-तीन प्रावर्त्त तथा पूर्ववत् मन्त्र पढ़कर चारों दिशाओं में ४ नमस्कार जाप्य पूरा करे ।

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