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व्रत कथा कोष
भावार्थ :-ऋतुकाल के बीत जाने पर अठारह दिन के पहले यदि कोई स्त्री रजस्वला हो जाये तो वह स्नान मात्र से शुद्ध हो जाती है।
सूतक ....... -- - - जातकं मृतकं चेति सूतकं द्विविधं स्मृतम् ।
स्रावः पातः प्रसूतिश्च त्रिविधं जातकस्य च ॥
भावार्थ :-सूतक दो प्रकार का है-(१) जातक (२) मृतक । इनमें जातक सूतक तीन प्रकार का होता है-(१) स्राव (२) पात (३) प्रसूति ।
स्राव, पात और प्रसूति मासत्रये चतुर्थे स गर्भस्य स्राव उच्यते ।
पातः स्यात् पंचमे षष्ठे प्रसूतिः सप्तमादिषु ।। भावार्थ :-गर्भाधान के बाद तीन या चार महीने में जो गर्भ च्युत हो उसे स्राव कहते हैं । पांचवें और छठवें मास में जो गर्भ च्युत हो उसे पात कहते हैं। और सातवें से दशवें मास तक जो गर्भ च्युत हो उसे प्रसूति कहते हैं।
स्राव सूतक माससंख्या दिनं मातुः नावे सूतकमिष्यते ।
स्नानेनैव तु शुद्धयन्ति सगोत्रश्चैव वै पिता ।।
भावार्थ :-जितने महीनों का स्राव हो उतने दिन का सूतक माता को होता है । और सगोत्री बन्धु तथा पिता स्नान मात्र से शुद्ध हो जाते हैं ।
गर्भपात सूतक पाते मातुर्थथामासं तावदेव दिनं भवेत् ।
सूतकं तु सपिण्डानां पितुश्चैकदिनं भवेत् ।।
भावार्थ :-जितने महीनों का पात हो उतने ही दिन का सूतक माता को होता है तथा सगोत्री भाई, बन्धु तथा पिता के लिए एक दिन मात्र का होता है ।
प्रसूति सूतकम् प्रसूतौ चैव निर्दोषं दशाह सूतकं भवेत् । त्रिपक्षे शुद्धयते सूती प्रसूतिस्थानमासकम् ॥