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व्रत कथा कोष
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को करना चाहिये । यहां जो प्रायश्चित-विधान बताया जा रहा है वह मुनियों की अपेक्षा से है । अतः श्रावक और श्राविकाओं को उक्त नियमानुसार प्रमाण से लेना चाहिये।
वतो में दोष का प्रायश्चित षष्ठमनुव्रतघाते गणव्रतशिक्षाव्रतस्य तु उपवासः ।
दर्शनाचारातिचारे जिनपूजा भवति निर्दिष्टा ॥ (छेदपिण्ड)
भावार्थ :-अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रतों के घात होने पर उपवास करे । तथा दर्शनाचारादि में दोष लगने पर जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करना ही इष्ट है।
पंच महापातकों के प्रायश्चित षण्णां सच्छावकारणां तु पंचपातकसन्निधो । महामहो जिनेन्द्राणां विशेषेण विशोधनम् ।। आदावन्ते च षष्ठं स्यात् श्रमरणान्येकविंशतिः । प्रमादाद्गोवधे शुद्धिः कर्तव्या शल्यजितैः । द्विगुणं द्विगुणं तस्मात् स्त्रीबालपुरुष हते ।
सदृष्टिश्रावकर्षोरणां द्विगुणं द्विगुणं ततः ।। भावार्थ :-छह प्रकार के जघन्य श्रावकों को पंचमहापातक दोष लगने पर गो, स्त्री, बालक, श्रावक, ऋषि इनका वध हो जाने पर श्री जिनेन्द्र भगवान की पूजा करना ही विशेष रूप से प्रायश्चित है । निःशल्य होकर प्रमाद और कषायपूर्वक यदि गाय का वध हो जाये तो श्रमणों (यतियों) को आदि अन्त में षष्ठोपवास तथा मध्य में २१ उपवास करना चाहिये । इसी प्रकार गो वध से दूना स्त्री-वध में अर्थात् स्त्री वध में ४२, बालक वध में ८४, सामान्य मनुष्य वध में १६८, सम्यकदृष्टि श्रावक के वध में ३६६ और ऋषि वध में ६७२ उपवास यतियों को करना चाहिये । यहां षष्ठोपवास का मतलब यह है धारणा और पारणा के दिन १-१ वक्त भोजन करने से दो वक्त भोजन त्याग हुआ, तथा बीच में एक बेला का ४ वक्त भोजन त्याग हुआ, इस प्रकार छह वक्त भोजन त्याग को षष्ठोपवास कहते हैं ।