Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 788
________________ वत कथा कोष [ ७२६ कथा यह व्रत पहले जिनचन्द्र राजा ने अपने परिवार सहित यथाविधि पालन कर उद्यापन किया था। इस कारण उसे राजेश्वर्य मिला था, उसने अनेक कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्यालय का दर्शन करके वज्रकपाट खोलकर धर्म प्रभावना की थी, अन्त में उसने दिगम्बर दीक्षा लेकर समाधिपूर्वक मरण किया जिससे वह देव हुआ। वहां बहुत समय तक सुख भोगकर मनुष्य भव लेकर मोक्ष गया। ऐसा इस व्रत का महत्व है । ज्ञान पच्चीसी व्रत (ज्ञान पंचविंशतिका व्रत) इस व्रत में एकादशी के ११ और चतुर्दशी के १४ ऐसे २५ उपवास करना चाहिये मतान्तर भेद से दशमी के १० और पूर्णिमा के १५ ऐसे २५ उपवास करना भी कहा गया है। इस व्रत का उद्देश्य द्वादशाङ्ग जिनवाणी की आराधना उपासना करना है, इससे सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होती है । इस व्रत में श्रुत ज्ञान की पूजा, श्रुतस्कन्ध यन्त्र का अभिषेक करना होता है, ११ अंग के ज्ञान के लिये ११ उपवास व १४ पूर्वी के ज्ञान के लिये १४ उपवास इस प्रकार २५ उपवास बताये हैं । यह श्रावण कृष्णा चतुर्दशी से शुरू करना चाहिये और प्रत्येक शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की ११ और १४ को यह व्रत करना चाहिये, इस व्रत में जाप ॐ ह्रीं जिनमुखोद्भूत द्वादशाङ्गाय नमः इस मंत्र का करना चाहिये । यह व्रत प्रखंडित १२ वर्ष करना चाहिये। १३वें वर्ष उद्यापन करना चाहिये । उद्यापन की शक्ति न हो तो व्रतः पुनः करना चाहिये । ज्ञानतप व्रत वर्ष में कभी भी १५८ उपवास करना चाहिये । (१) पंचपोरिया व्रत भादों सुदि पांचे दिन जान, घर पच्चीस बांटे पकवान । (२) कौमारसप्तमी व्रत भादों सुदि सप्तमी के दिना, खजरो मण्डप पूजेजिना । (३) मनचिती अष्टमी व्रत भादों सुदि पाठे दिन जान, मन चिन्ते भोजन परवान ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808