Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 785
________________ ७२६ ] व्रत कथा कोष हैं। इस व्रत का बड़ा भारी महत्व बताया गया है। यों तो इसके लिए किसी मास का बन्धन नहीं है, पर यह भाद्रपद मास से किया जाता है । इस व्रत का प्रारम्भ अष्टमी तिथि से करते हैं। व्रत करने के एक दिन पूर्व व्रत की धारणा की जाती है तथा चार महीनों के लिए शीलवत ग्रहण किया जाता है । इस व्रत के लिए 'मों ह्रीं पञ्चविंशतिदोषरहिताय सम्यग्दर्शनाय नमः' मन्त्र का जाप प्रतिदिन तीन बार उपवास के दिन करना चाहिए । सम्यग्दर्शन की विशुद्धि करने के लिए संसार और शरीर से विरक्ति प्राप्त करना चाहिए। भावना-पच्चीसी व्रत का दूसरा नाम सम्यक्त्व पच्चीसी भी है । इस व्रत के उपवास के दिन चैत्यालय प्रांगण में एक सुन्दर चौकी या टेबिल के ऊपर सस्कृतचन्दन, केशर आदि से संस्कृत कुम्भ चावलों के पुञ्ज ऊपर रखकर उस पर एक बड़ा थाल रखना चाहिए । थाल में सम्यग्दर्शन के गुणों को अंकित करके मध्य में पाण्डुकशिलाबनाकर प्रतिमा स्थापित कर देनी चाहिए । चार महिनों तक जब तक कि उपर्युक्त तिथियों के उपवास पूर्ण न होजायें भगवान का प्रतिदिन पूजन अभिषेक करना चाहिए। प्रत्येक उपवास के दिन अभिषेकपूर्वक पूजन करना आवश्यक है। यदि सम्भव हो तो व्रत समाप्ति तक प्रतिदिन उपर्युक्त मन्त्र का जाप करना चाहिए । अन्यथा उपवास के दिन ही जाप किया जा सकता है । ज्ञानावरणीय कर्म निवारण व्रत कथा आषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन में आने वाले कोई भी एक नंदीश्वर पर्व में सप्तमी के दिन एकासन करे, अष्टमो के दिन शुद्ध होकर मन्दिरजी में जावे, तीन प्रदक्षिणापूर्वक भगवान को नमस्कार करे, आदिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे, अखण्डदीप जलावे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं आदिनाथ तीर्थंकराय गोमुखयक्ष चक्रेश्वरी यक्षी सहिताय नमः स्वाहा। इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़, प्रदक्षिणापूर्वक मंगल आरती उतारते हुये एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, सत्पात्रों को दान देवे,

Loading...

Page Navigation
1 ... 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808