Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 782
________________ व्रत कथा कोष [ ७२३ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं शांतिनाथाय गरुडयक्ष महामानसी यक्षिसहिताय नमः स्वाहा। ___इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मंत्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े एक पूर्णप्रय॑ चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, सत्पात्रों को दान देवे, ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे, दूसरे दिन पूजा व दान देकर स्वयं पारणा करे, शक्तिनुसार उपवास करे । इस प्रकार त्रेपन महिने तक उसी तिथि को व्रत कर पूजा करना चाहिये, यह उतम विधि है, २७ व्रत करने से मध्यम विधि होती है और त्रेपन दिन की जघन्य विधि है । व्रत को उपरोक्त विधि से पालन कर अन्त में उद्यापन करे, उस समय शांतिनाथ विधान करके महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को दान देवे। कथा इस व्रत को श्रीषेण चक्रवर्ती ने पालन किया था, उसके प्रभाव से कर्म नष्ट कर मोक्ष को गया। व्रत कथा में राजा अंणिक रानी चेलना की कथा पढ़े । त्रिलोकतीज व्रत भादों सुदि तृतिया दिन जान, त्रिलोक तीज व्रत को ठान । प्रोषध तीन वर्ष मध करे, पीछे उद्यापन विधि धरे । -कथाकोष कथा भावार्थ :--यह व्रत तीन वर्ष में पूर्ण होता है, प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला ३ के दिन उपवास करे। 'ॐ ह्रीं त्रिलोक सम्बन्धि-प्रकृत्रिम जिन चैत्यालयेभ्यो नमः' इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे, व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे । ..- . --- त्रिगुणसार व्रत त्रिगुणसार व्रत इकतालीस, ग्यारा जेवा प्रोषध तीस ।। -वर्धमान पुराण भावार्थ :--यह व्रत ४१ दिनों में पूरा होता है जिसमें ३० उपवास और ११ पारणा होते हैं । यथा

Loading...

Page Navigation
1 ... 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808