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व्रत कथा कोष
भवति । तदभावे, आहारस्याप्यभाव एषः मुखशुद्धि संज्ञको नियमो देवसिको भवति ।
अर्थ :-त्रिमुखशुद्धि व्रत किसे कहते हैं ? आचार्य उत्तर देते हैं कि त्रिमुख शुद्धि व्रत में पात्रदान के अनन्तर भोजन ग्रहण किया जाता है । यदि द्वारापेक्षण करने पर भी पात्र की प्राप्ति न हो तो उस दिन आहार नहीं लिया जाता है । यह त्रिमुखशुद्धि संज्ञक नियम दिन में ही किया जाता है, अतः यह दैवसिक व्रत कहलाता है।
विवेचन :-त्रिमुखशुद्धि व्रत का वास्तविक अभिप्राय यह है कि पात्रदान के अनन्तर भोजन ग्रहण करने का नियम करना और दिन में तीनों बार-प्रातः, मध्यान्ह और अपरान्ह में द्वार पर खड़े होकर पात्र की प्रतीक्षा करना तथा पात्र उपलब्ध हो जाने पर आहार दान देने के उपरान्त आहार ग्रहण करना होता है । यह व्रत कभी भी किया जा सकता है, दान नहीं दिया जाता है, उपवास करना पड़ता है।
त्रिलोकभूषण व्रत कथा पौष शुक्ल तृतीया के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाभिषेक का द्रव्य लेकर जिनमन्दिरजी में जावे, मन्दिर की तोन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि कर भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर नवग्रह व भगवान महावीर की मूर्ति यक्षयक्षिणी सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, जयमाला पूर्वक स्तोत्र पढ़ता हुआ पूजा करे, साथ में नैवेद्य चढ़ावे, श्रुत व गूरु की पूजा करे, यक्षयक्षि की व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।
ॐ ह्रीं अहं नवग्रह देवेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, जिनसहस्र नाम पढ़े, व्रत कथा पढ़, महावीर चारित्र पढ़, एक महाअर्घ्य थाली में रखकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, उपवास करे, दूसरे दिन स्वयं पारणा करे, चतुर्विध संघ को आहार दानादिक देवे, इस प्रकार प्रत्येक महिने की उसी तिथि को पूजा कर उपवास करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय इस प्रकार बत्तीस महीने तक उपवास पूर्वक व्रत करे,