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वत कथा कोष
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अथ क्षायिक सम्यक्त्व व्रत कथा
व्रत विधि :- पहले के समान सब करे । अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ शु. २ के दिन एकाशन करना ३ के दिन उपवास करना चाहिए। श्रुत व गणधर पूजा करके यक्षयक्षी व ब्रह्मदेव को अर्चना करनी चाहिए और
“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं प्ररमल्लि मुनितीर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षी सहितेभ्यो नमः
इस मन्त्र का जाप करना चाहिए । तीन दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये । इस प्रकार प्रत्येक मास में दो बार इस तिथि का उपवास करे । इस प्रकार दश पूजा पूर्ण होने पर कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन करे । उस समय रत्नत्रय जिनविधान करके महाभिषेक करे । एक दम्पति को भोजन कराना चाहिए ।
कथा
पद्मनंदि नामका एक राजा था, उसको पद्मावती नाम की एक सुशील धर्म - पत्नी थी, उसके पद्मसेन नामक मंत्री था, उसकी पद्मगदा नामक स्त्री थी । इस पूरे परिवार सहित राजा सुख से रहता था ।
एक दिन उस नगर के उद्यान में श्रीधराचार्य महामुनि आकर उतरे । जब राजा ने सुना तो वे उनके दर्शन के लिये पैदल गये । मुनियों की तीन प्रदक्षिणा देकर पूजा वन्दना कर सामने आकर बैठे । गुरु के मुख से धर्मोपदेश सुनकर राजा ने महाराज से कहा कि हे महाराज ! अनंत सुख को देने वाला ऐसा कोई व्रत विधान कहो । तब महाराज जी ने कहा हे भव्योत्तम राजन् ! प्राप क्षायिक सम्यक्त्व व्रत का पालन करो जिससे प्रापका मनोरथ पूर्ण होगा । ऐसा कहकर महाराज जी ने सब विधि व्रत को बतायी । फिर सब लोग महाराज की वन्दना कर घर आये फिर उन्होंने इस व्रत को विधिपूर्वक पूर्ण किया जिससे उन्हें क्रम से मोक्ष-सुख मिला । यही इस व्रत का विधान है ।
त्रिमुखशुद्धि व्रत की विधि
किं नाम त्रिमुखशुद्धिव्रतम् ? त्रिमुखशुद्धिव्रते पात्रदानानन्तरं भोजन ग्रहणं