Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 773
________________ ७१४ ] व्रत कथा कोष करना । उसी प्रकार दशमी को आर्जव वगैरह का चिंतन करना चाहिए । ऐसे दश उपवास करना चाहिए । उपवास में एक एक भावना का चितवन करना चाहिए । यह व्रत ५ महोने में पूर्ण होता है। व्रत के दिन जलाभिषेक करना चाहिए । फिर पूजा करनी चाहिए । यथाशक्ति उद्यापन करे।। -गोविन्द कविकृत व्रत निर्णय अथ क्षायिकमोह अथवा क्षीणमोह अथवा क्षीणकषाय गुणस्थान व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करे। अन्तर केवल इतना है कि अाषाढ़ शु. ६ के दिन एकाशन करे । १० के दिन उपवास करे । पूजा वगैरह पहले के समान करे । १२ दम्पतियों को भोजन करावे, वस्त्र आदि दान करे। १०८ आम्र, १०८ कमलपुष्प बहावे । कथा पहले त्रिलोक तिलकपुर नगरी में लोकपाल राजा लोकोपकारिणी अपनी महारानी के साथ रहता था । उसका पुत्र लोकहितकार उसकी स्त्रो लोकसुन्दरी और लोककीर्ति पुरोहित उसकी स्त्री लोकिकशील सुन्दरी सारा परिवार सुख से रहता था। एक बार उन्होंने लोकसागर मुनि से व्रत लिया तथा उसको व्रत विधि से पालन किया । सर्वसुख को प्राप्त किया । अनुक्रम से मोक्ष गए। अथ क्षायिक उपभोग व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि ज्येष्ठ शुक्ल ७ के दिन एकाशन करे व ८मी के दिन उपवास करे । पूजा जाप पत्ते वगैरह पहले के समान करे । णमोकार मंत्र का ५ बार जाप करे । कथा यह व्रत पहले देवसेन राजा ने व उसकी रानी देवमती थी उसका लड़का देवकुमार उसकी पत्नी देवमणि ने यशोधर प्राचार्य से लिया था। यथाविधि पालन करने से वे अनुक्रम से मोक्ष गये थे।

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