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व्रत कथा कोष
लगी कि स्वामिन मुझे कोई व्रत प्रदान करो, तब मुनिराज ने पार्श्वतृतीया व्रत की विधि कह सुनायी, रानी लक्ष्मीमति ने व्रत का स्वरूप सुनकर बड़ी प्रसन्नता के साथ में व्रत को ग्रहण किया और राजा के साथ नगर में वापस आ गई व्रत को अच्छी तरह से पालन कर उसका उद्यापन किया, इस व्रत के प्रभाव से लक्ष्मीमती रानी ने बहुत पुण्यसंचय किया, क्रमशः स्त्रीलिंग छेदकर मोक्ष को गई ।
पंचपरमेष्ठी गुरण व्रत
अरिहंत के ४६ गुण उसके उपवास - चार चतुर्थी के चार, आठ अष्टमी के आठ, बीस दशमी के बीस और चौदह चतुर्दशी के १४ ऐसे ४६ उपवास करना । सिद्धि के आठ-आठ अष्टमी के आठ उपवास करना ।
आचार्य के ३६ - १२ द्वादशी के १२, ६ षष्ठी के ६, ५ पञ्चमी के ५, दश दशमी के दस और तीन तृतीया के तीन इस प्रकार ३६ उपवास करना ।
उपाध्याय जी के २५ गुण उसके उपवास - ११ एकादशमी के ग्यारह चौदह चतुदर्शी के १४, सर्व साधु के २८ गुण – १५ पञ्चमी के १५, ६ षष्ठी के ६, ७ प्रतिपदा के ७ ऐसे २८ उपवास करना अर्थात् सब मिलाकर १४३ है । एक एक परमेष्ठी के उपवास क्रम से पूर्ण करे । अरिहंत भगवान के ४६ उपवास क्रम से पूर्ण करने के बाद में (फिर) सिद्धी के उपवास करना इस प्रकार यह व्रत करना जिस-जिस परमेष्ठी के उपवास करना उस उस परमेष्ठी के गुणों का चिन्तवन उस उस दिन करना और “ॐ ह्रीं अर्हदुद्भ्यो नमः" “ॐ ह्रीं सिद्ध ेभ्यो नमः” “ॐ ह्रीं श्राचार्येभ्यो नमः” “ॐ ह्रीं उपाध्यायेभ्यो नमः" "ॐ ह्रीं सर्व साधुभ्यो नमः" /
इस मन्त्र का १०८ बार जाप करना, यह व्रत २८६ दिन में पूर्ण होता है । इसमें १४३ उपवास, १४३ पारणा होते हैं । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । यदि उद्यापन नहीं किया तो व्रत फिर से करना ( दूना करना) ।
इसके अलावा इस व्रत की और तीन रीतियां गोविन्दकृत व्रत नियम में दो हैं । वह इस प्रकार हैं
(१) श्रावण सदी पञ्चमी के दिन प्रोषधोपवास करना । उस दिन पञ्च