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व्रत कथा कोष
एक समय सेठ के घर में श्री नन्दस्वामी नाम के महामुनि पाहार के लिए प्राये, सेठ ने नवधाभक्तिपूर्वक मुनिराज को प्राहारदान दिया, फिर मुनिराज के पाहारदान होने के बाद में एक आसन पर मुनिराज को विराजमान करके लक्ष्मीमती अपने भवान्तर को पूछने लगी, मुनिराज ने उसके सात भवों की कथा सुनाई, तब लक्ष्मीमति ने कहा कि स्वामी! आप मझे मेरा सौभाग्य अखण्ड रहे, इसके लिए कोई उपाय बतायो तब मुनिराज कहने लगे कि हे बेटी! तुम सकल सौभाग्य व्रत का पालन करो, और व्रत पूर्ण होने के बाद उद्यापन करो। इस व्रत को उसने विधिपूर्वक पालन किया, अन्त में मरकर राजा भीष्म की रुकमणी नाम की कन्या होकर उत्पन्न हुई, इसलिए तुम राजा श्रीकृष्ण की प्रिय पत्नी हुई हो । पूर्व जन्म में तुमने यथाशक्ति सकल सौभाग्य व्रत को पाला है, इस कारण तुम को सकल सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
ऐसा सुनकर रुकमणी ने पुनः सकल सौभाग्य व्रत गणधर स्वामी से स्वीकार किया, नेमिश्वर को नमस्कार करके द्वारिका में वापस आये, कालानुसार रुकमणी ने सर्व यादवों के साथ व्रत का यथाविधि पालन किया, यथाविधि उद्यापन किया, आयिका दीक्षा लेकर तपश्चरण किया, अन्त में समाधिमरण करके स्त्रीलिंग का छेद करके सोलहवें स्वर्ग में देव उत्पन्न हुई।
हे भव्य जीवो ! तुम भी इस व्रत का पालन करो, इस व्रत के कारण तुम को भी स्वर्ग सुख की प्राप्ति होकर मोक्ष गति मिलेगी।
___ प्रकारान्तर से सुगन्धदशमो व्रत की विधि सुगन्धदशमीमाहभद्र भाद्रपदे मासे शुक्लेऽस्मिन्पञ्चमीदिने । उपोष्यते यथाशक्तिः क्रियते कुसुमाञ्जलिः ।। तथा षष्ठयां च सप्तम्यां वाष्टम्यां नवमीदिने । जिनानामग्रतो भूयो दशम्यां जिनवेश्मनि ॥ उपवासं समादाय विधिरेष विधीयते । चतुर्विंशतितीर्थानां स्नपनं पूजनं ततः ॥ सुमधुररसः पूजां धूपं दशविधं तथा । पूर्णेन्दुदशमे वर्षे तदुद्यापनमाचरेत् ॥