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व्रत कथा कोष
सेठ देखि कम्पित मन मांय, तब ही राज सुथानक जाय । धरे जाय राजा के पांय, सब वृतान्त कहो सुनि राय । को वेशभूषा तो भाय, परघातक चोर श्रानिद्यो लाय । इह विधि सेठ सुना नृप बात, चाल्यो निजघर कम्पित गात । साह सुतासों यों वच कह्यो, तें हमकों यह क्या दुख दयो । पतिको जाने है या नांहि, कहो दीप बितु जानों कांहि ॥ कबहूं दीपक हेतु सनेह, मोकों मम माता नहि देह | सेठ कहे किस ही विधि जान, तिलकमतीजब बहुरि बखान ॥ इक विधि करि मैं जानू तात, सो यह सुनो हमारी बात । जब पति श्राते मोटिंग जहां, तब उनिपद धोवत थी तहां ॥ धोवत चररण पिछानूं सही, श्रौर इलाज यहां अब नहीं । सेठ कहो भूपति सों जाय कन्या, तो इस भांति बताय ।। ऐसे सुनि तब बोलो भूप, इह विधि तो तुम जानिश्रनूप । तस्कर ठीक करन के काज, तुम घर श्रावेंगे हम आज || सेठ तबै प्रति प्रमुदित भयो, प्रा तैयारी करतो भयो । तब राजा परिवार मिलाय, तब ही सेठ तर घर जाय ।। सकल प्रजा जु इकट्ठी भई, तिलकमती बुलवाय सु लई । नेत्र मूंद पद धोवत जाय, यह भी नाहीं स्वामी श्राय ॥ जब नृप के चरणाम्बुज धोय, कहती भई यही पति होय । राजा हंसियों कहतो भयो, याने मैं तस्कर कर दयो ।। तिलकमती पुनि ऐसी कही, नृप हो या कोई होवे सही । लोक हंसन लागे तिहि वार, भूप मना कीन्हें ततकार ॥ वृथा हास्य लोगो मति करो, मैं ही पति निश्चित मन धरों । लोग कहें कैसे इह बनी, प्रादि अन्त लों भूपति भनी ।। तब ही सकल लोक यो कहों, कन्या धन्य भूप पति लहो । पूरब इन व्रत कीन्हों सार, ताको फल यह फल्यो प्रवार ॥