________________
व्रत कथा कोष
[ ६४५
उपवास, पश्चात् पारणा, अनन्तर दो दिन का उपवास एक पारणा, पश्चात् एक उपवास, पारणा, तत्पश्चात् तीन दिन का उपवास पारणा, पांच दिन का उपवास पारणा, चार दिन का उपवास पारणा, पांच दिन का उपवास पारणा, पुनः पांच दिन का उपवास पारणा, पश्चात् चार दिन का उपवास पारणा, पांच दिन का उपवास पारणा, तीन दिन का उपवास पारणा, एक दिन का उपवास पारणा, दो दिन का उपवास पारणा एवं एक दिन का उपवास पारणा की जाती हैं अर्थात् ४-२+१+ ३+२+४+३+५+४+५+५+४+५+३+४+२+३+१+२+१ दिनों के उपवासों के अनन्तर पारणाएँ की जाती हैं । इस व्रत को शक्तिशाली, इन्द्रियजयी और व्रती श्रावक ही कर सकते हैं । यह तपकी प्रक्रिया है। मध्यम व्रत करने वाला उपर्युक्त उपवासों से भी डूने उपवास करता है, तब पारणा होती है । उत्तम विधि करने वाला २+४+२+६+४+६+६+१०+८+१०+१०+८+१०+६+६+४ +६+२+४+ २ = २० मध्य की पारणाएँ कुल १४० दिन पुनः इस प्रकार व्रतारम्भ करता है तथा तीसरी बार २+४+२+६+४+६+६+१०+८+१०+१०+ + १०+६+६+४+६+२+२+२इस प्रकार कुल व्रत दिन संख्या १४० + १४० + १३८ = ४१८ उपवास +२० पारणा+१२० उपवास+२० पारणा ११५ उपवास+२० पारणा - ४१८ दिन अर्थात् १३ महिना २८ दिन प्रमाण ।
सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत यह व्रत तेरह महिने अट्ठाईस दिन में अर्थात् ४१८ दिन में पूरा होता है । यह महामुनि का व्रत है। साधारण श्रावक इस व्रत का पालन नहीं कर सकते हैं। व्रतधारी श्रावक कर सकता है । यह सांवत्सरिक व्रत हैं । यह व्रत तीन प्रकार का है । उत्तम, मध्यम, जघन्य ।
उत्तम १३ महिने २८ दिन का मध्यम ५ महिने १० दिन का
जघन्य २ महीने २० दिन का है । इसमें ६० उपवास और २० पारणे होते हैं । यह उत्तम शक्तिशाली इन्द्रिय विजयी व्रती श्रावक को करना चाहिए।
उत्तम विधि :-इसमें दो उपवास एक पारणा, ४ उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, पुनः छः उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा,