Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 766
________________ व्रत कथा कोष [ ७०७ जिनभगवान का अभिषेक पूजन करना ऐसे १२ वर्ष करना चाहिए । पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । नहीं तो व्रत दूना करे । -गोविन्दकृत व्रत निर्णय इस व्रत में चार समय अर्थात् तीन संध्या (सुबह दोपहर शाम) और रात में १०८ बार 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय नमः" मन्त्र का जाप करे । १२ को श्रवण नक्षत्र होता है इसलिए इस व्रत का नाम श्रावण द्वादशी है, इस व्रत की सामान्य विधि दूसरे व्रत के समान ही है। पर यदि श्रवण नक्षत्र त्रयोदशी या एकादशी के दिन आये तो उस दिन करना चाहिए । श्रवण नक्षत्र का जैनों में बहुत महत्व है । सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सौभाग्य के लिए करती हैं । कथा मालव प्रान्त में पद्मावतीपुर नगरी है। उसमें राजा नरब्रह्मा उसकी रानी विजयवल्लभा; उसकी पुत्री शीलवती अत्यन्त कुरूप कुबड़ी जन्मी । वह जैसे-जैसे बढ़ने लगी वैसे-वैसे उसके माता-पिता को चिन्ता होने लगी। एक बार श्रवणोत्तम महाराज विहार करते-करते वहां आये । राजा परिवार सहित दर्शन को गया । धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा ने अपनी पुत्री के भवान्तर पूछे व कौनसे पाप के फल से उसको यह फल मिला है और अब क्या करने से उसका पाप दूर होगा, यह पूछा । तब मुनि महाराज बोले । राजन ! इस अवंति देश में पांडवपुर नामक नगर है उसका राजा संग्राम मल्ल और रानी वसुन्धरा थी। उस नगरी का पुरोहित देवशर्मा अपनी कालसूरी स्त्री सहित रहता था, उसकी पुत्री कपिला अत्यन्त गुणी व सुन्दरी थी। ___ एक बार वह अपनी सहेलियों के साथ वनक्रीड़ा करने गयी। रास्ते में उन्होंने दिगम्बर साधु को देखा और उनको निन्दा की। इतना ही नहीं उनके अंग पर मिट्टी उड़ायी व थूक दिया। यह उपसर्ग मुनिमहाराज ने शान्तभाव से सहन किया । वे ध्यान में लीन हो गये, उपसर्ग सहन करते हुए केवलज्ञान प्राप्त हुग्रा । कपिला इस पाप के कारण नरक में गयी । वहां से वह निकल कर हथिनी हुई, माजरी (बिल्ली) हुई सर्पिणी हुई, वहां से चान्डालिन हुई । अब वह राजन तेरे घर जन्मी है पूर्वजन्म के पाप के कारण यह फल भोग रही है । यदि उसे इससे मुक्ति चाहिए तो उसे द्वादशी व्रत पालना चाहिए। जिससे वह यहां से मर कर तेरे ही पेट से अर्ककेतु होगा इसका

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