Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 765
________________ ७०६ ] व्रत कथा कोष कम होता है, जब श्रवरण एक दिन भागे या एक दिन पीछे पड़ता है । द्वादशी तिथि व्रत के लिए छह घटी प्रमाण होने पर ही ग्राह्य है । यदि कभी ऐसी परिस्थिति श्रावे कि द्वादशी में श्रवण नक्षत्र न मिले, तो उस समय प्रस्तकालीन तिथि भी ग्रहण की जा सकती है । द्वादशी को प्रातः काल में श्रवण नक्षत्र का होना आवश्यक नहीं है, किसी भी समय द्वादशी और श्रवण का योग होना चाहिए । ज्योतिष शास्त्र में भाद्रपद शुक्ला द्वादशी और श्रवण नक्षत्र के योग को बहुत श्रेष्ठ बताया है, इसका कारण यह है कि श्रावण मास में पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र पड़ता है, तथा भाद्रपद मास में पूर्णिमा को भाद्रपद नक्षत्र । द्वादशी श्रवरण से संयुक्त होकर विशेष पुण्यकाल उत्पन्न करती है, क्योंकि श्रवण नक्षत्र मासवाली पूर्णिमा के पश्चात् प्रथम बार, द्वादशी के साथ योग करता है । चन्द्रमा नीच राशि से श्रागे निकल जाता है, और अपनी उच्च राशि की ओर बढ़ता है । द्वादशी तिथि को यों तो अनुराधा नक्षत्र श्रेष्ठ माना जाता है, परन्तु भाद्रपद मास में श्रवण ही श्रेष्ठतम बताया गया । इस कारण श्रवण से संयुक्त द्वादशी कल्याणप्रद, पुण्यकारक और जीवनमार्ग में गति देने वाली होती है । अपनी मासान्त की पूर्णिमा के संयोग के पश्चात् श्रवण प्रथम बार जिस किसी तिथि से संयोग करता है, वही तिथि श्रेष्ठ, पुण्योत्पादक और मंगलप्रद मानी जाती है। श्रवण की यह स्थिति भाद्रपद शुक्ला द्वादशी को ही आती है, अतः यह व्रत महान् पुण्य को देने वाला बताया गया है । श्रवण द्वादशी व्रत का महात्म्य जैनियों में बहुत अधिक माना गया है । इस व्रत को प्रायः सौभाग्यवती स्त्रियां अपनी सौभाग्यवृद्धि, सन्तान प्राप्ति तथा अपनी ऐहिक मंगल कामना से करती हैं । इस व्रत की अवधि बारह वर्ष तक मानी गयी है, बारह वर्ष तक विधिपूर्वक व्रत करने के उपरान्त व्रत का उद्यापन करना चाहिए । मुकुट सप्तमी, निर्दोष सप्तमी और श्रवण द्वादशी ये सब व्रत वर्ष में एक बार ही किये जाते हैं । जो तिथियां इनके लिए निश्चित की गयी हैं, उन उन तिथियों में ही उन्हें सम्पन्न करना चाहिए। श्रवण-द्वादशी व्रत के दिन वासुपूज्य भगवान के पंचकल्याणकों का चिंतन करना चाहिए । श्रावरण द्वादशी व्रत भाद्रपद सुदी १२ के दिन प्रोषधोपवास करना, इस व्रत के दिन वासुपूज्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808