________________
७०४ ]
व्रत कथा कोष
"ॐ ह्रीं श्रसि श्रा उ सा" इस मन्त्र का जाप लवंग या पुष्पों से करना चाहिये यह जाप अकेले या और लोगों के साथ मिलकर कर सकते हैं । नवमी के दिन होम कुण्ड बनाकर उसमें 'ॐ
ह्रीं न सि श्रा उ सा' इस
मन्त्र के १०००० जाप ( प्राहुति ) देना चाहिये ।
उसके बाद चौबीस तीर्थंकर की पूजा, गुरु पूजा, सरस्वति पूजा करके कलशों से तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए फिर शान्ति विसर्जन करना चाहिए। सरस्वती पूजा के समय जिनवाणी सामने रखनी चाहिए। सरस्वती की पूजा में शास्त्र बन्धन चढ़ाना चाहिए | जयमाला के समय प्रत्येक स्त्री-पुरुष को एक-एक नारियल चढ़ाना चाहिए | यथाशक्ति दान देना चाहिये ।
सम्यक्त्व चतुर्विंशति व्रत
वर्ष में एक बार कभी भी इस व्रत की शुरूआत करनी चाहिए परन्तु क्रम से चौबीस प्रोषधोपवास करना चाहिए । पहले दिन एकाशन दूसरे दिन उपवास तीसरे दिन एकाशन करके इस क्रम से एक उपवास एक एकाशन करना चाहिए अर्थात् २४ एकाशन व २४ पारणा इस प्रकार यह व्रत ४८ दिन में पूरा होता है । - गोविंद कविकृत व्रत निर्णय इस व्रत में ४८ एकाशन भी कर सकते हैं । इसका जाप ॐ ह्रीं वृषभादि चतुविंशति जिनाय नमः है ।
- जैन व्रत विधान संग्रह
श्रुतावतार कथा
ज्येष्ठ शुक्ल एकम के दिन शुद्ध होकर मन्दिर जी में जावे, तीन प्रदक्षिणा पूर्वक भगवान को नमस्कार करे, पंचपरमेष्ठि की प्रतिमा स्थापन कर व श्रुतस्कंध स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत, देवी व गणधर की
पूजा करे, यक्षयक्षी व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः श्रहं प्रति श्राउसा अनाहत विधाय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र को १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, यह व्रत कथा पढ़ े, एक पूर्ण अर्घ चढ़ावे, शक्तिनुसार उपवास करे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, सत्पात्रों को दान देते हुये धर्मध्यान से रहे ।