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व्रत कथा कोष
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लेना चाहिए, इस प्रकार यह व्रत चार महीने करना चाहिए। केवल चावल नमक बिना लेना यह कांजिहार है । नदीश्वर व्रत के प्रारम्भ में जो अष्टमी आती है उसो दिन से यह व्रत प्रारम्भ करना चाहिए । व्रत पूरा होने पर उद्यापन करे ।
-गोविन्द कृत व्रत निर्णय सिद्धचक्र व्रत यह व्रत प्राषाढ़, कार्तिक व फाल्गुन इन महिनों में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक करना चाहिए वर्ष में तीन बार करना चाहिए। इस व्रत में आठ दिन उपवास या एक उपवास एक आहार कर सकते हैं।
इस व्रत की उत्कृष्ट अवधि १२ वर्ष व मध्यम ६ वर्ष और जघन्य तीन वर्ष है । इस व्रत में पाठ दिन जिनमन्दिर में पंचामृत अभिषेक करके अष्टद्रव्य से पूजा करके सिद्धपरमेष्ठी की पूजा करनी चाहिए व उसका चिंतन करना चाहिए।
सवर्ण पात्र में सिद्ध भगवान का यन्त्र कप रचन्दन आदि गंध से निकाले । इस यन्त्र पर १०८ बार पुष्पों से प्रतिदिन जाप करना चाहिए। यह जाप जाई जुई के पुष्पों से करे पंचरंगों से नंदीश्वर पर्वत का मण्डल (साथिया) निकालना चाहिये । उस पर कोठे निकालना चाहिये । उसके चार विभाग में चार जिनप्रतिमा महापूजा के लिए स्थापना करनी चाहिए अष्टमी से पूर्णिमा तक अष्ट द्रव्य से पूजा करनी चाहिये । इन आठ दिनों में सचित का त्याग करना चाहिये । प्रारम्भ छोड़ना चाहिये व्रत पूर्ण होने पर कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को भक्ति से सिद्ध यन्त्र की अष्टद्रव्य से पूजा करनी चाहिये । सत्पात्र को प्राहार दान देना चाहिए फिर पारणा करना चाहिये।
इसकी दूसरी विधि इस प्रकार है ऊपर लिखे अनुसार मांडला बनाकर पहले दिन पाठ दूसरे दिन पूजा करके पूजा के समय १६ तीसरे दिन ३२ चौथे दिन ६४ पांचवें दिन १२८ छठे दिन २५६ सातवें दिन पाँच सौ बारह और पाठवें दिन १०२४ अर्घ्य जयमाला सहित देना चाहिये नवमें दिन शान्ति विसर्जन वगैरह करना चाहिये । पूजा करने वाला व कराने वाला दोनों सुश्रावक होने चाहिये । विधान शुरू करने पर एक लक्ष जाप करना चाहिये वह मन्त्र इस प्रकार है