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व्रत कथा कोष
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करने लगी कि हे मुनिराज मेरे कल्याण के लिये कुछ व्रत प्रदान करिये, उसकी प्रार्थना सुनकर मुनिराज कहने लगे कि हे देवि, तुम सिद्ध व्रत का पालन करो, ऐसा कहते हुये, व्रत की विधि कह सुनाई । सुनकर लक्ष्मीमती को बहुत आनन्द हुआ उसने भक्ति से व्रत को ग्रहण किया और नगर में बापस लौट आई, व्रत का पालन अच्छी तरह से किया, उसका उद्यापन भी किया, अंत में समाधि से मरकर स्वर्ग में गई, वहां का सुख भोगने लगी।
सौख्य व्रत इसके दो प्रकार हैं-(१) वृहद् सौख्य व्रत (२) लघु सौख्य व्रत
वृहद् सौख्य व्रत :--इस व्रत में १२० उपवास होते हैं । किसी भी महिने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू करना चाहिए । प्रतिपदा का एक, द्वितीया का दो, तृतीया का ३, चतुर्थी के ४ इस प्रकार क्रम से जो तिथि है उस तिथि के उतने उपवास करना चाहिए पूर्णिमा के १५ इस क्रम से करना चाहिए। कुल १२० उपवास करना चाहिए । वृद्धि तिथि का उपवास नहीं करना चाहिए व्रत पूर्ण होते ही उद्यापन करना चाहिए। यह व्रत १० वर्ष करना चाहिए।
(2) लघु सौख्य व्रत :-इसके सिर्फ १६ उपवास हैं । शुद्ध पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ करना चाहिए पहले पक्ष में प्रतिपदा का उपवास करना, दूसरे पक्ष में द्वितीया का, तृतीय पक्ष में तृतीया का, चतुर्थ पक्ष में चतुर्थी का इस प्रकार पंचम पक्ष में छठे पक्ष में इस प्रकार १५ पक्ष में पूर्णिमा के दिन और १६वां उपवास अमावस्या को करना चाहिए । यह व्रत आठ महिने करना चाहिये । उद्यापन करना चाहिए । शक्ति न हो तो व्रत दुबारा करना चाहिए।
-गोविन्द कवि कृत व्रत निर्णय सूतक परिहार व्रत कथा भाद्र शुक्ला १४ चौदश के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहने पूजाभिषेक का सामान लेकर जिन मन्दिर जी में जावे, प्रथम मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईयर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर चौबीस भगवान की यक्ष यक्षिणी सहित मूर्ति स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, आगम व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की भी पूजा करे।