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व्रत कथा कोष
लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य चढ़ा देवे । इस प्रकार आठ दिन पूजा कर सत्पात्रों को दान देवे, स्वयं पाठ वस्तुओं में से एक वस्तु से पारणा करे, एकाशन करे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, धर्मध्यान से समय बितावे, पांच पूजा पूरी होने पर उद्यापन करे, उस समय पंचमेरु विधान करके पंचामता. भिषेक करे, चतुर्विध संघ को दान देवे ।
कथा विजया पर्वत पर जलकापुर नाम का नगर है, उस नगर में अमितवेग नाम का राजा अपनी वेगावति नाम की रानी के साथ सुख से राज्य करता था, उस राजा के मणिमाला नाम को यौवनवति एक सुन्दर कन्था थी, वह कन्या महान विदुषी थी।
__एक दिन उसके घर पर मुनिराज आहारचर्या के लिए आये, निरन्तराय आहार होने के बाद ऊंचे आसन पर मुनिराज को बैठाकर प्रार्थना करने लगी कि गुरुदेव मुझे कोई व्रत प्रदान करें, जिससे मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो । तब मुनिराज ने कहा कि हे कन्ये ! तुम सीतादेवी व्रत का पालन करो, और व्रत की विधि कही, कन्या ने व्रत को ग्रहण किया, मुनिराज जंगल को वापस चले गये।
मणिमाला अष्टान्हिका में एक दिन पूर्व मन्दर मेरु पर जाकर पूजा कर जप ध्यान करके बैठी थी कि एक नरदेव नाम का विद्याधर राजा वहां आया और उस कन्या पर आसक्त होकर पूजा में विघ्न करने लगा, और कर करा कर चला गया। प्रागे कुछ दिनों में उस कन्या ने आर्यिका दीक्षा ले ली और घोर तपश्चरण करने लगी, इतने में वो विद्याधर वहां आकर उसके तप में विघ्न उपस्थित करने लगा, तब उस कन्या ने निदान किया कि मैं तेरे भोगों में विघ्न उपस्थित करूगी और मरकर स्वर्ग में देवी हुई, वहां से चयकर वह सीता हुई और वह नरदेव मरकर रावण हुआ। कालान्तर में वह रावण के मरने में कारण बनी।
योगधारण व्रत कथा ___ ज्येष्ठ शुक्ल तेरस को शुद्ध होकर पूजा कर एकाशन करे और चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल शुद्ध वस्त्र पहनकर जिनमन्दिर में जावे, वहां मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा समाकर ईर्यापथ शुद्धि करके भगवान को नमस्कार करे, चंद्रप्रभु भगवान