Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 751
________________ ६६२ ] वत कथा कोष कथा इस व्रत को राजा जनक ने पालन किया था, उसने भी स्वर्गादिक विभति भोगी थी। अथ सनत्कुमार चक्रवति व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करे । अंतर केवल इतना है कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में पहले मंगलवार को एक भुक्ति और बुधवार को उपवास पूजा वगैरह करे । शान्तिनाथ तीर्थंकर की आराधना मन्त्र जाप करे, १२ प्रकार के पकवान का नैवेद्य बनाये, १२ दम्पतियों को भोजन करावे । कथा इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तर भाग में वत्सकावति नामक विस्तीर्ण देश में महापुर नामक नगर है । वहां पर धर्मसेन नामक राजा राज्य करता था । अपने पूरे परिवार सहित धर्मध्यानपूर्वक राज्य कर रहा था। एक दिन दिव्यज्ञानधारी सुधर्माचार्य राजमार्ग पर आहार के लिये निकले । राजा ने नवधाभक्तिपूर्वक पड़गाहन किया । निरंतराय पाहार करवाने के बाद मुनि महाराज ने धर्मोपदेश दिया, तब राजा ने कहा हे भवसागर-तारक दयालु महामुने ! मेरा भवान्तर कहो, तब उन्होंने उसका सर्व भववृत कहा । तब राजा ने कोई दुःख को दूर करने वाला व्रत मांगा। तब महाराजजी ने सनत्कुमार चक्रवति व्रत ले ऐसा कहकर उन्होंने सम्पूर्ण विधि बतायी। यह सुन राजा को बहुत ही खुशी हुई। तब राजा ने इस व्रत का पालन किया। एक बार विद्युत (बिजली) के चमकने से उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुा । अपने पुत्र को राज्य देकर जिन-दीक्षा लो। और प्राचाम्लवर्धनादि घोर तपश्चरण किया । एक मास संन्यास योग धारण करने के बाद वे १५वें स्वर्ग गये । वहां पर बाईस सागर की आयु पूर्ण करने के बाद वहां से चय करके सुकौशल नामक विशाल देश है, उसमें विनीतपुर नामक नगर है। वहां इक्ष्वाकुवंशी नतवीर्य नामक राजा व उसकी पटरानी सहदेवी सहित राज्य करता था। उनके गर्भ में पूर्वोक्त देव पाकर उत्पन्न हुआ । उसका नामकरण करके सनत्कुमार नाम रखा। थोड़े ही समय में उसने चक्रवति पद प्राप्त कर लिया और अनेक स्त्रियों के साथ राज्य-सुख

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