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व्रत कथा कोष
करे, पांच नैवेद्य चढ़ावे, उस दिन उपवास करे, अथवा एकाशन व एकभुक्ति करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, ग्रन्त में उद्यापन करना । उद्यापन के समय में महा धरणेन्द्र सहित पद्मावति पार्श्वनाथ की मूर्ति का महाअभिषेक करे, एक थाली में रत्नत्रय का यन्त्र गंध से बनावे, एक सेर कोई भी धान्य का पुञ्ज रखकर उसके ऊपर दूध से भरा हुआ कुंभ रखे, उस कुंभ पर यंत्र निकाली हुई थाली रखे, उस थाली के बीच में जिन प्रतिमा रखे, भ्रष्टद्रव्य से पूजा करके पांच प्रकार की मिठाई चढ़ावे तीन रत्न चढ़ावे ।
उपरोक्त मन्त्र को ३० बार ३० बार अलग-अलग बोलकर पांच प्रकार की मिठाई, ३० तीस-तीस बार चढ़ावे, ३० फल, ३० सुपारी, ३० पान से मंत्र बोलता जाय और चढ़ाता जाय, याने २४० बार अलग-अलग मन्त्र पढ़े और मन्त्र बोलकर अलग-अलग उपरोक्त द्रव्य चढ़ावे, जिनवाणी की पूजा व गुरु की पूजा करे, यक्ष यक्षि सहित क्षेत्रपाल की पूजा अर्चना सम्मान करे णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, तीन वायना तैयार करे, माने तोन बांस के करंड मंगवाकर उसमें उपरोक्त सभी पदार्थ भर देवे । एक वायना जिनेन्द्र को चढ़ावे, एक वायना सरस्वती को चढ़ावे, एक स्वयं लेवे, एक महाअर्घ्य करके मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, हाथ का महाअर्घ्य चढ़ा देवे शांतिविसर्जन करके घर पर जावे, शक्ति अनुसार चतुर्विध संघ को प्राहारदान देवे, स्वयं पारणा करे । इस प्रकार व्रत का विधान है ।
कथा
भरतक्षेत्र के उज्जयनी नगर में एक समय रत्नपाल नाम का राजा अपनी गुणवान रत्नमाला रानी के साथ में राज्य करता था, एक दिन नगर के उद्यान में रत्नसागर मुनिराज प्राये, वनपाल के द्वारा सूचना प्राप्त होने पर राजा-रानी नगर निवासी लोग मुनिराज के दर्शन के लिये उद्यान में गये, दर्शन करके वहां धर्मोपदेश सुना, और रत्नमाला रानी हाथ जोड़कर मुनिराज को प्रार्थना करने लगी कि हे स्त्रामिन् संसार के दुःखों से छुटकर मोक्ष सुख की प्राप्ति हो ऐसा कोई एक उपाय बताइये, तब मुनिराज ने कहा कि देवि तुम उसके लिये, सुगंध बंधुर व्रत करो, ऐसा कहकर सब व्रत का विधान कह सुनाया, सुनकर रानी को बहुत आनन्द हुआ, और व्रत को ग्रहण किया, अपने नगर में वापस आ गये, रानी ने व्रत को अच्छी