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व्रत कथा कोष
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हे गुरुदेव, हमारे घर में दरिद्रता ने क्यों डेरा डाला है ? क्या कारण है ? उसके लिये कुछ उपाय बतायो।
तब मुनिराज ने कहा कि तुमने व्रत को ग्रहण किया और व्रत के प्रभाव से सुख सम्पदा भी बढ़ी, लेकिन अन्त में व्रत के प्रति अहंकार के कारण उदासीनता
आ गई, व्रत को ठीक-ठीक नहीं पाला, इसलिये दरिद्रता ने घर में डेरा डाला है, यह सब सुनकर सेठानी को बहुत दुःख हुआ, पश्चाताप करने लगी । पुनः उसने व्रत को स्वीकार किया, भक्ति से व्रत का पालन किया, अन्त में उद्यापन किया, पुनः उसके घर में धन-समृद्धि बढ़ने लगी, पुत्र आदि भी वापस आकर मिल गये, सब लोग एकत्र होकर सुख का उपभोग करने लगे, अन्त में समाधि धारण कर स्वर्ग को गई ।
सप्त कुंभ व्रत इस व्रत की विधि तीन प्रकार से है उत्तम, मध्यम व जघन्य ।
(१) उत्तम विधि :-क्रम से १६/१५/१४/१३/१२/११/१०/६/८/७/६/५ /४/३/२/१ फिर १५/१४/१३/१२/११/१०/६/८/७/६/५/४/३/२/१ फिर से १५/१४/१३/१२/११/१०/६/८/७/६/५/४/३/२/१ फिर से १५/१४/१३।१२।११। १०/६/८/७/६।५/४/३/२/१। इस प्रकार ४२५ उपवास करना, यह उपवास एकएक करके पूर्ण करना चाहिए । प्रत्येक उपवास पूर्ण होने पर पारणा करना चाहिए । इस क्रम से उपवास करना चाहिए । इस प्रकार ६१ पारणे होते हैं अर्थात् यह व्रत ४२५+६१=४८६ दिन में पूर्ण होता है ।
(२) मध्यम विधि :-सब विधि ऊपर के समान है । किन्तु उपवास के प्रारम्भ में ६ उपवास करना होगा तो इस प्रकार ६/८/७/६/५/४/३/२/१ इस क्रम से फिर ८/७/६/५/४/३/२/१ इस क्रम से तीन बार उपवास करना अर्थात् १५३ उपवास हुये और ३३ पारणे हुये इस प्रकार १५३+३३ = १८६ दिन में व्रत पूर्ण होता है।
(३) जघन्य विधि :-क्रम से ५/४/३/२/१ फिर ४/३/२/१ फिर ४/३/ २/१ ऐसे ४५ उपवास व १७ पारणे मिलकर ६२ दिन में पूर्ण होते हैं ।
-व्रत विधान से