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व्रत कथा कोष
एक दिन संभूत नामक दिगम्बर दिव्यज्ञानी मुनिश्वर आहार चर्या के लिए वहां आये । तब राजा ने नवधाभक्तिपूर्वक आहार दान दिया। फिर मुनिश्वर एक पाटे पर बैठ गये । राजा ने हमें कोई व्रत दो ऐसा कहा तब उन्होंने सुभौम चक्रवर्ती व्रत करने के लिये कहा । विधि भी पहले के समान सब बता दी । राजा ने यह व्रत किया ।
एक दिन शत्रुत्रों से युद्ध में लड़ रहा था, वह हार गया । मान भंग होने से उसके मन में तत्काल वैराग्य उत्पन्न हुआ । जिससे उन्होंने जंगल में जाकर जिनेश्वरी दीक्षा ली । चक्रवर्ती को देखकर उन्होंने निदान किया अन्त समय समाधि पूर्वक मरण हुआ, महा शुक्र में देव हुआ, स्वर्गीय सुख भोगकर जमदग्नि नामक राजा हुमा, कुमार अवस्था में ही उसे वैराग्य हो गया जिससे मिथ्यातापसी होकर पंचाग्नितप तपने लगा ।
इधर एक नगर में दृढ़ग्राही नामक राजा राज्य करता था। वहां हरिवर्मा नामक ब्राह्मण रहता था। दोनों का भ्रापस में बहुत प्र ेम था, एक दिन इन दोनों को संसार से वैराग्य हो गया जिससे दोनों ने जिनदीक्षा धारण की और घोर तप - श्चर्या करने लगे । अन्त समय में समाधिपूर्वक मरण हुआ जिससे दृढ़ग्राही तो शतार स्वर्ग में व हरिवर्मा ज्योतिलोक में ज्योतिषि देव हुआ । एक बार दोनों देव अचानक सम्मेदशिखर के दर्शन करने आये । वहां वे तपस्या के महत्व की चर्चा कर रहे थे । उन्होंने वहां जमदग्नि को तपस्या करते देखा, पक्षी बनकर उस तापस के श्राश्रम में घोंसला बना कर रहने लगे ।
एक दिन दोनों पक्षी आपस में कहने लगे कि आज में जंगल में गया था वहां मुझे एक बात सुनने को मिली है वह बहुत ही खराब है तब दूसरे पक्षी ने कहा वह बात कौनसी है ? तब उसने कहा इस जमदग्नि को नरक की गति प्राप्त होगी । इस प्रकार का पक्षियों का वार्तालाप सुनकर वह जमदग्नि बहुत ही गुस्से से उनके पास आया और पूछने लगा कि मुझे नरक गति मिलेगी यह तुम्हें कैसे ज्ञात हुआ ? तब एक पक्षी ने कहा 'अपुत्रस्य गति नास्ति' ऐसे शास्त्र में कहा गया है । यह सुन उसको पश्चाताप हुन ।
श्राज तक किया गया तप व्यर्थ गया ऐसा सोचकर वह उसी समय उज्जयनी नगरी गया। वहां पर पारद नामक नरपति राज्य करता था । वह उसका मामा