Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 735
________________ ६७६ ] व्रत कथा कोष अथ सुकुमारव्रत कथा व्रत विधिः- १२ महीनों में किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी या कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकाशन करे । सम्पूर्ण विधि पहले के समान करे । जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं श्रर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्बसाधुभ्यो नमः स्वाहा इस मन्त्र का जाप १०८ पुष्पों से करे । कथा इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र में अवंति नामक देश है, उसमें उज्जयनी नामक एक मनोहर नगर है । उसमें प्रधोतन नामक राजा राज्य करता था । उसके नगर में सुरेन्द्रदत्त नामक एक बड़ा गुणशील, सुन्दर, सुकोमल सेठ रहता था, उसको यशोभद्रा नामक पत्नी थी । ३२ कोटि धन का स्वामी था पर उसको पुत्र नहीं था, इसलिये वह चिन्ता में अपना समय निकालता था। एक दिन नगर के उद्यान में शीलसागर नामक महामुनि संघ सहित आये । यह शुभ समाचार राजा ने सुने तो वह दर्शन करने के लिये गये वहां भक्ति से तीन प्रदक्षिणा देकर वन्दना की । फिर बहुत समय तक धर्मोपदेश सुना फिर राजा विनय से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे ज्ञानसिंधो स्वामिन ! आपकी कृपा से मुझे सब कुछ प्राप्त हुआ है पर मात्र हमारे पुत्र नहीं है इसलिये हम दुःखी हैं । अतः अब हमें पुत्र होगा कि नहीं और उसके लिये हम कौनसा व्रत करें, यह बात हमें आप कृपा करके कहें। यह सुन मुनिश्वर ने उनसे कहा - हे भव्य श्रेष्ठिन ! अब आपको बड़ा पुण्यशाली व भव्य पुत्र उत्पन्न होने लिये आप सुकुमार व्रत का पालन करो। ऐसा कह कर उन्होंने व्रत की सब विधि बतायी । यह सुन उसको बहुत आनंद हुआ । सब दर्शनकर अपने-अपने स्थान चले गये । फिर सुरेन्द्रदत्त श्रेष्ठी व उसकी पत्नी ने इस व्रत का पालन किया और उद्यापन भी किया । वाला है उसके उसके बाद यशोभद्रा को गर्भ रहा । उसके नव महिने पूर्ण होने पर सुकुमार नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । पुत्र का मुख देखते ही श्रेष्ठी को वैराग्य उत्पन्न हुआ जिससे उसने जंगल में जाकर जिनदीक्षा ली । घोर तपश्चरण करके समाधिपूर्वक शरीर छोड़ा जिससे वह स्वर्ग गये और चिरकाल सुख भोगने लगे ।

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