Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 738
________________ व्रत कथा कोष [६७ था । जमदग्नि ने अपना पूरा वृतान्त सुना दिया और कहा कि प्रापकी कोई भी एक कन्या मुझे दें । तब राजा ने अपनी चार लड़कियां उसके पास भेजी पर तीन लड़कियाँ तो डर कर भाग गयी पर एक लड़की को बहुत कुछ चीजें देकर खुश कर लिया । उसे वह तापस अपने आश्रम में ले गया, वहां पर उसका उसने पालन-पोषण किया। जब वह बड़ी हो गई तो उसने उससे शादी कर ली। बहुत समय जाने पर उसको पतिराम व परशुराम ऐसे दो पुत्र उत्पन्न हुये । ___एक दिन अरिंजय नामक मुनि उस पाश्रम में गये तब रेणुकी ने यह मेरा भाई है ऐसा सोचकर वंदना को । तब उन मुनि ने उससे कहा हे कन्या ! अाज सम्यग्दर्शन रूपी धन देने पाया हूं जिससे तुझे स्वर्गादि सुख की प्राप्ति होगी। ऐसा कहकर उसको कामधेनु व विद्यामन्त्र व एक परशु देकर चला गया। एक बार सहस्रबाहु राजा उद्यान की शोभा देखने वहां प्राया, तब रेणुकी ने उस कामधेनु से स्वादिष्ट भोजन मांगकर उसे भोजन कराया। भोजन अति स्वादिष्ट था, खाकर राजा ने कहा यह क्या है ? उसने कहा अरिंजय मुनिश्वर ने दिया है, तब वह राजा जबरदस्ती उस कामधेनु को लेकर जाने लगा, तब उस पतिराम व परशुराम ने उनके दुःख को दूर किया और अनेक विद्याए सिद्ध की। एक दिन दोनों भाइयों ने साकेत नगरी में रात्रि को जाकर सहस्रबाहु को मारकर उसका राज्य छीन लिया। इसके पहले सहस्रबाहु की रानी गुप्त रीति से शांडिल्य नामक तापस के आश्रम में चली गई थी । उसके गर्भ से महाशुक्र से प्राया हुमा देव सुभौम बनकर पाया । उसका पालन-पोषण बह कर रही थी। एक दिन अचानक शिबगुप्ति नामक महामुनि चर्या के निमित्त से उस प्राश्रम में आये, तब उस चित्रावती ने उनको नवधाभक्तिपूर्वक पडगाह कर निरंतराय पाहार कराया। महाराज आहार के बाद बाहर बैठे थे तब चित्रावती ने अपने पुत्र का सब वृतान्त पूछा। तब अवधिज्ञान से समस्त भविष्य जानकर उसको बताया यह १५ वर्ष की उम्र में षटखंड का अधिपति होगा, यह कहकर वे मुनि वहां से चले गये । इधर पतिराम व परशुराम ने बयालोस बार क्षत्रिय वंश का निर्मूल नाश किया था । एक बार उनके घर के ऊपर उल्कापात हुमा । उस समय एक नैमित्तिक को

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