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व्रत कथा कोष
भगवान की मूर्ति स्थापन करे, पंचामृताभिषेक करे, भगवान के आगे, शुद्ध भूमि पर पंचवर्ण से अष्टदल कमलयन्त्र याने मांडला बनाकर, मध्य में ह्रीं अथवा स्वसिक बनावे, उस स्वस्तिक के ऊपर चावलों का पूज रखकर एक मंगल कलश रखे, एक थाली में पांच पान रखकर उन पानों पर अर्घ्य रखे, फिर उस थाली को मंगलकला पर रखे, उस थाली में पंचपरमेष्ठि की मूर्ति स्थापन करे, फिर अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, गणधर पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल को भी पूजा करे, .. पांच प्रकार के नैवेद्य से पूजा करे।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौं ह्रः असि पाउसा अनाहत विद्यायै नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, सोलहकारण भावना भावे, पंचगुरु भक्ति पढ़े, व्रत कथा पढ़े, ब्रह्मचर्यपूर्वक उपवास करके धर्मध्यान से समय बितावे, एक थाली में महाअर्घ्य रखकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, दूसरे दिन सत्पात्रों को दान देकर अपने पारणा करे, इस प्रकार इस व्रत को पांच वर्ष या पांच महिने तक करे, अन्त में उद्यापन करे, उस समय पंचपरमेष्ठि की एक नवीन प्रतिमा लाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे, दानादिक देवे । व्रत कथा के लिये चेलना चरित्र पढ़े।
सौख्यसुत सम्पत्ति व्रत कथा प्राषाढ़ शुक्ल अष्टमी के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाभिषेक का सामान हाथ में लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तोन प्रदक्षिणा लगाव, ईर्यापथ शुद्धि करके, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, श्री जिनेन्द्र भगवान का पंचामृताभिषेक करके भगवान की पूजा करे, श्रत व गणधर की पूजा करे, यक्षयक्षिणी क्षेत्रपाल को पूजा करे, भगवान के आगे तीन पान लगाकर ऊपर अष्ट द्रव्य रखे।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं अर्हत्परमेष्ठिने नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०० बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक महाअर्घ्य करके हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, अर्घ्य भगवान को चढ़ा देवे, इसी प्रकार