Book Title: Vrat Katha kosha
Author(s): Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 723
________________ ६६४ ] व्रत कथा कोष तुम दीक्षा लोगे, तब राजा ने पूछा पुत्र पैदा होगा वह कौन होगा और उसका काल.. क्या है ? तब महाराज कहने लगे राजन ! कश्मीर प्रान्त में हस्तिनापुर नगर है, उसका राजा अरिमर्दन, उसकी रानी विनोदमंजरी, उसका पुत्र अच्युत और उसके राज्य का श्रेष्ठी रुद्रदत्त और उसकी स्त्री रुद्रदत्ता उसे १६ पुत्र थे, उन सब की शादी करा दी १५ लड़कों को उसने १८ कोटि धन दिया और नागरुद्र को ४ कोटि धन दिया और बचा हुआ कोटि धन उसने जिन धर्म की प्रभावना के लिये जिन मंदिर, जीर्णोद्धार आदि में खर्च किया । फिर रुद्रदत्त ने पिहिताश्रव मुनि महाराज के पास दीक्षा ली । १२ वर्ष तक आचार्य के पास रहकर कठोर तपश्चरण किया । ज्ञान प्राप्त कर आचार्य की आज्ञा से भूतल पर विहार करने लगे । नागरुद्र व्यसनी निकला, उसने अपना पूरा धन व्यसन में गंवा दिया । अन्त में वह निर्धन हो गया तब वह अपना गांव छोड़कर अन्य जगह चला गया । वहां पर वह साधु का वेष धारण कर रहने लगा और वहां पर कुशास्त्र का अध्ययन करने लगा और उसका प्रचार करने के लिये सद्गुरु की निन्दा करने लगा । वह स्वेच्छाचारी बना अन्त में मरकर नरक गया । वहां पर वह दुःखमय श्रायु भोग कर कुक्कुट गांव में कुत्ता बना, वह जन्म से ही लंगड़ा था । उसका पूरा अंग रोग से जर्जरित था । दुःख से मररण हुआ । पुनः उसने हस्तिनापुर में एक गरीब बाह्मण के यहां जन्म लिया वहां पर करककंटक राजा राज्य करता था । उसी नगर में कुबेरदत्त श्रेष्ठ रहता था । उसकी पत्नी कनकमाला, उसका पुत्र धनदेव था । धनदेव र वह बाह्मण पुत्र मनोहर दोनों पक्के दोस्त थे, पर धनदेव जिनधर्मीय व मनोहर शैव धर्मी था व दरिद्री था, धनदेव सम्पन्न था, मनोहर क्रोधी तो धनदेव वृत्ति से शान्त था । परस्पर विरोधी स्वभाव होने पर भी वे सच्चे दोस्त थे । धनदेव विवेकी था उसने मनोहर को जिनधर्मी बनाने का निश्चय किया । वह उसे अपने साथ नियम से जिन मन्दिर ले जाता था, पर धनदेव मन्दिर में जाता था तब वह बाहर खड़ा रहता था । · एक बार दोनों बुद्धिसागर मुनि के दर्शन को गये । उनको नमस्कार करके

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