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व्रत कथा कोष
इस व्रत का पहले अपने पूर्वभव में यथाविधि पालन किया था। उसका उद्यापन भी किया था। इससे ही वह आगे सुदर्शन नामक सर्व धन-सम्पन्न श्रष्ठी हुया और सर्व सांसारिक सुख भोगकर अन्ल में समाधिपूर्वक मरकर स्वर्ग में महद्धिक देव हुा । वहां का सुख भोगकर वह मनुष्य हो मोक्ष गया। ऐसा इस व्रत का प्रभाव है।
___यह दृष्टांत व व्रतविधान श्री गुणभद्राचार्य के मुख से सन बकसेनादि को व पूरे परिवार को बहुत ही खुशी हुई । फिर उन्होंने भी मुनि महाराज को नमस्कार करके सुदर्शन श्रेष्ठी व्रत लिया । फिर महाराज सबको आशीर्वाद देकर चले गये।
उसके बाद समयानुसार उन्होंने इस व्रत का पालन किया और उद्यापन किया जिससे वे स्वर्ग गये ।
सौभाग्य व्रत कथा आषाढ़ शुक्ल अष्टमी के दिन व्रतीक स्नान कर तथा शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाभिषेक का सामान लेकर जिन मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर चौबीस तीर्थंकर की मूर्ति यक्षयक्षि सहित स्थापन करे, और जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, एक सुगन्धित फूलों की माला बनाकर भगवान को समर्पित करे, भारती उतारे, श्रत व गरू की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे, ज्वालामालिनी, पद्मावति देवी व जलदेवता को भी अर्घ्य चढ़ावे । तीन सौभाग्यवति स्त्रियो को कुकु लगावे ।
ॐ ह्रीं अहं चतुर्विशति तीर्थकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाग्य करे, णमोकार मन्त्र का भी १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में महाप्रर्घ्य रखकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर मंगल प्रारती उतारे, सत्पात्रों को दान देवे, इसी प्रकार चार महीने तक इसी तिथि को उपवास कर पूजा करे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, धर्मध्यान से समय बितावे, अन्त में कार्तिक शुक्ल पोर्णिमा के दिन उपवास कर, उस समय जिनेन्द्र भगवान का पंचामृताभिषेक करे, तीन प्रकार के नैवेद्य से भगवान की