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व्रत कथा कोष
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पूजा करे, तीनों स्त्रियों को वायना देवे, चतुर्विधसंघ को दान देवे, फिर पारगा करे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सुरम्य नाम का देश है, उसमें हस्तिनापुर नामक नगर है, वहां पर पहले एक भूपाल नाम का राजा मनोहर नाम की राणी सहित सुख से राज्य करता था, उसी नगर में धनपाल नाम का सेठ अपनी धनवती नाम की सेठानी सहित रहता था, सेठानी को सन्तान उत्पन्न न होने के कारण सेठ अपनी सेठानी की ओर कभी भी नहीं देखता था ।
एक समय नगर के उद्यान में देशभूषण नामक महामुनिश्वर श्राये, धनवती सेठानी को मालूम पड़ते ही दर्शन के लिए उद्यान में गयी, मुनिराज की तोन प्रदक्षिणा लगाकर नमस्कार किया, धर्मोपदेश सुनकर हाथ जोड़कर नमस्कार करती हुई प्रार्थना करने लगी कि हे महामुनि, मेरे अभी तक संतान उत्पन्न न होने के कारण मेरा जन्म निरर्थक सा दीख रहा है, क्या करू
इस प्रकार उसके दैन्य वचन सुनकर मुनिराज कहने लगे कि हे देवि ! मैं तुम्हारे पूर्वभव कहता हूँ सुनो। एक बार तुमने पूर्वभव में एक मुनिराज को देखकर उदासीनता व्यक्त की, ग्लानि की, इसीलिये तुमको संतान उत्पन्न नहीं हुई और उदासीनता हो रही है । यह सुनकर सेठानी को बहुत बुरा लगा, वह प्रार्थना करने लगी कि हे देव इस दुःख से छुटकारा पाने के लिये कुछ उपाय बताओ, तब मुनिराज कहने लगे कि हे पुत्री तुम सौभाग्य व्रत का पालन करो, ऐसा कहते हुये व्रत की विधि कही, उस सेठानी ने प्रसन्नतापूर्वक व्रत को स्वीकार किया और अपने घर वापस लौट आयी, उसने व्रत को अच्छी तरह से पाला अंत में उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से उसको एक बहुत ही सुन्दर भाग्यशाली देवकुमार पुत्र उत्पन्न हुआ, सुख से रहने लगी । एक दिन संसार से वैराग्य लेकर संन्यास विधि से मरण किया
और स्वर्ग में सुख भोगने लगी ।..
समाधिविधान व्रत कथा
tra शुक्ल अष्टमी के दिन प्रातःकाल व्रतिक स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा सामग्री हाथ में लेकर जिनमन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा गावे, ईर्याथ शुद्धि करके भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पंचपरमेष्ठि