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व्रत कथा कोष
तातें मुनि महा दुख पाय, होय श्रचेत गये अधिकाय । funfun है तो प्रतिघनो, दुष्ट स्वभाव अधिक जानो ॥ तब ही वन सों प्रायो राय, सुनी बात राजा दुख पाय । रानी सों खोटे वच कहे, वस्त्राभरण खोसि कर लये ।। काढ़ दई तब बाहर जबै दुखी भई प्रति चित में तबै । कष्टातुर व्है प्रारत कियो, प्रारण छोर महिषीतन लियो । ताकी माय भैंस मर गई, तब प्रति ये दुर्बलता लई । एक समै कर्दम मधि जाय, मग्न भई नाना दुख पाय || तहां थकी देखो मुनि कोय, सींग हिलाये क्रोधित होय । तब ही गर्त विषे गड़ि गई, प्रारण छोरि के गदही भई ।। भई पांगु पिछले पांय, तब ही एक मुनिश्वर श्राय ! पूरब वैर सुमन में ठयो, तहां कलुष परिणाम जु भयो । दोहा
गर्भावते विनस्यो तात, पार्ले सुजन मरे पुनि सोय, इक योजन लों श्रावे बास, पञ्च प्रभख फल खावो करे, तहां एक मुनि शिषजुत देख, तावन में आये गुण भरे More from a अधिकाय, मुनि भाषें सुनि मनवच काय,
कियो क्रोध मन में घनो, दई दुलातें जाय । प्रारण छोरि निज पापतें, लई सूकरी काय ।। स्वानादिक के दुःखतै, भूखी प्यासी होय । मरि चाण्डाली के सुता, उपजी निन्दित सोय ।। चौपाई उपजत हो तन त्यागो मात | श्ररु श्रावत तन में बदबोय || ताहि थकी श्रावे नहि स्वास । ऐसी विधि वन में सो फिरे ।। रागद्वेष तजि शुद्धि विशेष । लघुमुनिगुरू सों प्रश्न जुकरे ॥ स्वामी कारण मोहिं बताय । जो प्रारणी ऋषिकों दुखदाय || ते नाना दुख पावें सही, मुनिनिन्दासम अघकोउ नहीं ।